धर्म के दश लक्षण | Dharm Ke Dash Lakshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ द
उत्तम क्षमा 15 `
दिया । सारा धी पिघल गया, और फिर वह पहिले की ही भांति एक-एक दानै, ,
को उठा-उठा कर खाने ठगा । जब सास पानी भरकर गिलास लायी तो पूछा बेटे
अब तुम क्यो नही खिचड़ी को अच्छी तरह खाते ? तो वह बोल-क्या कख मांजी
अभी खिचडी मे घी पड़ ही नही है । थोडा घी जौर डाल दो । इस बार जब घी
उसी डवली को पिले की ही भाति उसने थार मे ओधाया तो सारा का-साराधी
थाल मे आ गया । अब तो सास बहुत धबड़ायी मगर फिर सास को एक उपाय
सृजा । क्या उपाय किया कि दमाद से बोरी कि बेटा तुम हमे बहुत प्रिय हौ, तुम
पर हमारा बहुत स्नेह है । हमारा जी चाहता है कि आज अपन दोनो एकं साथ
बैठकर इसी थाली मे खिचड़ी खावे । अच्छी बात । जद सास खिचड़ी खामे ठगी
नो दमाद को तो बातो मे लगाये हुए थी कि देखो बेटा तुम्हारे भैया हमारी लड़की
को यो कहते है, तुम्हारे पिता उसको यो कहते है, तुम्हारी मा उसको यो बोलती
हे आदि, और एक हाथ से वह थारीका सारा घी अपनी ओर करती जाय ।
अव वह दमाद सोच रहा था कि देखो यह सास कितनी चालाकी हमारे साथ खेर
रही टै । तो उसने भी एक उपाय किया । अपनी कला दिखायी उसने थार को
उठाया और बोला कि देखो तुम्हारी लड़की को चाहे जो कोई कुछ भी कहे पर
उन सारी वातो को तो उसे यो (मुह मे सारा घी डालकर) पी जाना चाहिए । तो
इस दृ्टान से हम आपको यह शिक्षा ठेना चाहिए किं कोई हमे कु भी कहे उन
मव वानो को हमे पी जाना चाहिए । उसमे रुष्ट न होना चाष्िए, कषाय भाव
न लाना चाहिए । उसके प्रति उत्तम क्षमाभाव ही धारण करना चाहिए । यही हम
आपकी उत्तम क्षमा है । यह क्षमा प्राणियो के सताप को रने वारी, चादनी क
समान अत्यत निर्मल और श्रेष्ठ है । ज्ञानीजन उत्तम क्षमा का लाभ चितामणि रल
के समान मानते है । क्षमा ही ठोक मे परम शरण है । माता के समान रक्षा करने
वाढी है । कर्मनिर्जरा का कारण है । सब उपद्रव दूर करने वाली है । इसीछिए
कहा है कि-
चित्र कमा सम जगत मे, नहीं जीव का कोय ।
आरु भैरी नहीं क्रोष सम, निश्चय जानो जोय ॥
क्रोध जीव का बैरी है, इस जीव के संयमभाव, सतोष भाव, निराकुलता के
भाव को दग्ध करने के छिए अग्नि समान है क्रोध से यश नष्ट होकर अपयश बढ़ता
है । क्रोध में धर्म अधर्म का विचार नष्ट हो जाता है । विवेक जाता रहता है ।
क्रोधी समस्त धर्म को लोप कैर लेक निन््द्य वचन बोलने लगता है तथा माता
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