गल्प - कुसुमाकर | Galp - Kusumakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ कमा प्राथना
हैं। परमात्माको आगे रखकर इस प्रकार अनीति करना कोई
इनसे सीख ले । इसीख््यि में इस दंगसे परमात्माको नहीं मानता ।
जिसकी पवित्र सृष्िमें खोग दिन दहाडे उसीके नामपर डके डा
और वह सब कुछ जान बूककर तथा सवशक्तिमान् होकर भी कुछ
न कहता हो यह कित नी विचारणीय बात दै ।
उधथव भड़क उठा और बोला कि माधव ! जब तू नास्तिक होकर
ईश्वरको सबके सामने ईश्वरीय न्यायसे न डरकर उसे कोसता है तब
तू मेरा भाई नहीं दुश्मन है। तेरा मुंद देखनेसे पाप छगता है ।
जा अपनी घरवाठीको लेकर निकछठ जा। इस घरमें अब तुमे
स्थान न मिलेगा । परमात्मा तुमसे दर-दरकी खाक छनवायेगा
और तब तेरी अकछ ठिकाने आयेगी । नास्तिक कहीं का
[ २ |
माधव राजगढ़ मंडीमें मजदूरी करने ठगा है। यह २।। मन
की बोरीकों ऊपर फंककर टांग चिन देता है। रत्तको चौकीदारी
भी किया करता है । मगर अभी इसके पास इतनी पंजी नहीं हो
पाई है कि जिससे यह ठप्पे छाकर श्रमजीविओंमें से नाम कटाकर
अपनी रंगसाज़ीका काम आरंभ कर दे । इसीछिये हरदेवी रोज़
कहती है कि--मुे भी साथ ले चढा करो जिससे दुगने पंसे
आने ला ।
माधव--हरदेई ! जहातक जीवित हं तुमे यह दासी-कम
न करने दगा । मेने तेरा हाथ गुखामी करानेके स्यि नहीं पकड़ा
था। में तुभे स्वर्गकी देवी बनाना चाहता हूं। जेसे-तेसे इस
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