गल्प - कुसुमाकर | Galp - Kusumakar

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Galp - Kusumakar by पुप्फ़ भिक्खु - Pupf Bhikkhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ कमा प्राथना हैं। परमात्माको आगे रखकर इस प्रकार अनीति करना कोई इनसे सीख ले । इसीख््यि में इस दंगसे परमात्माको नहीं मानता । जिसकी पवित्र सृष्िमें खोग दिन दहाडे उसीके नामपर डके डा और वह सब कुछ जान बूककर तथा सवशक्तिमान्‌ होकर भी कुछ न कहता हो यह कित नी विचारणीय बात दै । उधथव भड़क उठा और बोला कि माधव ! जब तू नास्तिक होकर ईश्वरको सबके सामने ईश्वरीय न्यायसे न डरकर उसे कोसता है तब तू मेरा भाई नहीं दुश्मन है। तेरा मुंद देखनेसे पाप छगता है । जा अपनी घरवाठीको लेकर निकछठ जा। इस घरमें अब तुमे स्थान न मिलेगा । परमात्मा तुमसे दर-दरकी खाक छनवायेगा और तब तेरी अकछ ठिकाने आयेगी । नास्तिक कहीं का [ २ | माधव राजगढ़ मंडीमें मजदूरी करने ठगा है। यह २।। मन की बोरीकों ऊपर फंककर टांग चिन देता है। रत्तको चौकीदारी भी किया करता है । मगर अभी इसके पास इतनी पंजी नहीं हो पाई है कि जिससे यह ठप्पे छाकर श्रमजीविओंमें से नाम कटाकर अपनी रंगसाज़ीका काम आरंभ कर दे । इसीछिये हरदेवी रोज़ कहती है कि--मुे भी साथ ले चढा करो जिससे दुगने पंसे आने ला । माधव--हरदेई ! जहातक जीवित हं तुमे यह दासी-कम न करने दगा । मेने तेरा हाथ गुखामी करानेके स्यि नहीं पकड़ा था। में तुभे स्वर्गकी देवी बनाना चाहता हूं। जेसे-तेसे इस




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