कथा एक प्रान्तर की | Katha Ek Prantar Ki

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Katha Ek Prantar Ki by एस॰ के॰ पोट्टे क्काट - S. K. Pottekkat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एस॰ के॰ पोट्टे क्काट - S. K. Pottekkat

Add Infomation AboutS. K. Pottekkat

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
1 एक रजिस्ट्री खत अपने बड़े भाई एवं घराने के सुखिया श्री चेनक्कोत्तु केलुक्कुट्टि के सम्मुख वरिष्ठ उत्तराधिकारी चेनवकोत्तु कृष्णन का सादर निवेदन मेरी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की बात तय करके पिछले साल आपने ही मगनी की रस्म पुरी की थी । लेकिन उस औरत को ब्याह कर घर लाने के लिए घराने के मुखिया होने के नाते आपने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की । अपनी बूढ़ी माँ और छोटे बच्चो की परवरिश का भार मेरी नाक में दम कर रहा है । विवाह के लिए कम-से-कम पचास स्पये खर्च करने की सख्त जरूरत है । चूंकि इतनी रकम मेरे पास नही है अत घरानेकी परम्परा के अनुसार विवाह का इन्तजाम करने का दायित्व आप पर है । यदि आप अपना दायित्व पुरा नही करेंगे तो आज से पन्द्रह दिन बाद मै उक्त रकम किसी और से उधार लेकर ज़रूरी का्ये- वाही करूँगा । उस स्थिति मे मुझे या साहुकार को उक्त रकम देने की जिम्मेदारी आपकी होगी । इस नोटिस के जरिए मै आपको इस बात की सुचना देता हू । भवदीय, ह° चेनक्कोत्त तारीख 21 फरवरी,1912 कृष्णन मास्टर का चेनक्कीत्तु घराना उस पुराने शहर के मशहूर चार प्ररानौ मे से एक था । कृष्णन मास्टर के स्वर्गीय पिता कुजप्पु ब्रिटिश सरकारी सेवा में थे--एच एस कस्टम मे एक चपरासी । उस जमाने मे वह अच्छा पेशा माना जाता था । सरकारी मोहरवाली वर्दी, नियमित मासिकं वेतन, असामियों से घूस लेने की सुविधा, जहाज द्वारा आयात होने वाले सामान मे से थोडा हडप लेने की छूट इस पेशे के मुख्य आकर्षण थे । कुजप्पु एक हट्टा-कट्टा, गोरा-चिट्टा नौजवान था । कूजप्पु की कुल-महिमा और व्यक्तित्व देखकर ही गोरे साहब ने उसे कस्टम के चौकीदार की नौकरी दी थी।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now