निजात्मशुद्धिभावना और मोक्षमार्गप्रदीप | Nijatmashuddhibhavana Aur Mokshamargapradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
देखकर रा्मचंदरके चित्तम ₹ंसारमोगपे विरक्ति उत्पन हौगई।
प्रपत ` ससमागमश् खोना उचित नहीं समझकर उन्होंने श्री
आचार्यचरणमें आजन्म ब्र्लचर्यब्रतको प्रहण किया |
सन् १९२५ फरवरी महीनेकी बात है । श्रवणबेठगोठ
मद्दाक्षे्रमें श्री बाहुबलिस्वार्मका महामस्तकामिषेक था । इस
महदामिषेकक समाचार पाकर ज्रह्मचारिजाने वहां जानेकी इच्छा
की । अवणुबेठणुलू जानेके पहिठे अपने पास जो कुछ भी संप्ति
थी उसे दानधर्म आदि कर उसका सदुपयोग किया | एवं अवण-
बेलगुरुू में आचार्य शांतिसागर महाराजसे कुक दीक्षा ली । उस
समय आपका झुभनाम क्षुक पार्श्चकॉर्ति रखा गया । ध्यान अध्य-
यनादि कार्योमें अपने चित्तको ढगाते हुए अपने चासित्र में अ पने
रद्ध कीं व आचार्यचरणम ही रहने खो ।
चार वषं बाद आचार्यपादका चातुर्मास कुंभोज ( बाहुबलि
पाड ) मे हज | उस समय आचार्यं॑महाराजने श्षुष्टकजीके
चारित्रकी निर्मटता देखकर उन्हे ेष्टक जो कि श्रावकपदमें उत्तम
स्थान है, उसमे दीक्षित किया ।
बाहुबलि पह्टाडपर एक खास बात यह हुई कि संघभक्त-
शिरोमणि सेठ पूनमचंद घासं।लाउजी आतचार्यवंदनाक दिये आये |
और मद्दाराजके चरणोंमें प्रार्थना की कि मैं सम्मेदशिखरनी के
छिये संघ निकाउना चाहता हूं । आप अपने संघसहित पधारकर
भ
हमें सेवा करनेका अवसर द | आचार्यं महाराजने संघमकरिवे-
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