निजात्मशुद्धिभावना और मोक्षमार्गप्रदीप | Nijatmashuddhibhavana Aur Mokshamargapradeep

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Nijatmashuddhibhavana Aur Mokshamargapradeep by श्री कुन्थु सागर जी महाराज - Shri Kunthu Sagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) देखकर रा्मचंदरके चित्तम ₹ंसारमोगपे विरक्ति उत्पन हौगई। प्रपत ` ससमागमश् खोना उचित नहीं समझकर उन्होंने श्री आचार्यचरणमें आजन्म ब्र्लचर्यब्रतको प्रहण किया | सन्‌ १९२५ फरवरी महीनेकी बात है । श्रवणबेठगोठ मद्दाक्षे्रमें श्री बाहुबलिस्वार्मका महामस्तकामिषेक था । इस महदामिषेकक समाचार पाकर ज्रह्मचारिजाने वहां जानेकी इच्छा की । अवणुबेठणुलू जानेके पहिठे अपने पास जो कुछ भी संप्ति थी उसे दानधर्म आदि कर उसका सदुपयोग किया | एवं अवण- बेलगुरुू में आचार्य शांतिसागर महाराजसे कुक दीक्षा ली । उस समय आपका झुभनाम क्षुक पार्श्चकॉर्ति रखा गया । ध्यान अध्य- यनादि कार्योमें अपने चित्तको ढगाते हुए अपने चासित्र में अ पने रद्ध कीं व आचार्यचरणम ही रहने खो । चार वषं बाद आचार्यपादका चातुर्मास कुंभोज ( बाहुबलि पाड ) मे हज | उस समय आचार्यं॑महाराजने श्षुष्टकजीके चारित्रकी निर्मटता देखकर उन्हे ेष्टक जो कि श्रावकपदमें उत्तम स्थान है, उसमे दीक्षित किया । बाहुबलि पह्टाडपर एक खास बात यह हुई कि संघभक्त- शिरोमणि सेठ पूनमचंद घासं।लाउजी आतचार्यवंदनाक दिये आये | और मद्दाराजके चरणोंमें प्रार्थना की कि मैं सम्मेदशिखरनी के छिये संघ निकाउना चाहता हूं । आप अपने संघसहित पधारकर भ हमें सेवा करनेका अवसर द | आचार्यं महाराजने संघमकरिवे-




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