शिक्षण - सिद्धान्त की रूप - रेखा | Shikshan - Siddhant Ki Rup - Rekha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सरयू प्रसाद चौबे - Sarayu Prasad Chaube
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा का उद्देश्य [ ३
की झावश्यकता; शिक्षा है । इससे हम अपनी शक्ति का अनुमान
का सामाजिक उद्देश्य । लगा सक्ते हैँ । मनुष्य ऐसा जीव दै
जिसका विकास कुछ निश्चित नियमों
के आधार पर होता है । उसका विकास कभी रकता नहीं । इस
दृष्टि से हम कह सकते ह किं शिकला का उदेश्य विकास
करना' है । ब्य इ ने भी विका ओथ) की गणना शिक्षा के
महत्वपूर्ण उत्तेश्यों में की है। पर यहाँ विक्रास का तात्पय
याहं? विकास का झथं यहाँ व्यक्तिगत और सामाजिक
दोनों श्रकार के विकास से है। आजकल भ्रजातन्त्रका युग
है । इस प्रणाली में व्यक्ति और समाज दोनों के हितों की रक्ता
की जाती है। व्यक्तिगत विकास की ओर ध्यान देने का
तास्ये समाज-हित शी उपेक्षा नहीं है, पर समाज-हित का
भी अर्थ साम्यवबाद की तरह व्यक्ति को गोण नदीं समभा
है । समाज और व्यक्ति दोनों एक दुसरे पर निभेर रहते है ।
समाज व्यक्ति का दी समूह् है । व्यक्ति की उन्नति से समाज
की उन्नति निश्चित हो जाती है । श्रत: शिक्षा में व्यक्ति के ही
विकास पर जोर देना आवश्यक है । उसके शारीरिक ओर
मानसिक विकास के झनुसार उसकी शिक्षा की व्यवस्था
करनी चाहिये । मानसिक क्षेत्र में बुद्धि के विकास पर विशेष-
कर जोर देना आवश्यक है, क्योंकि बुद्धि ही से हम शिक्षा
के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति का पता लग। सकते हैं । बुद्धि: दी
से व्यक्तित्व और चरित्र का विकास सम्भव होता है। विषम
परिस्थितियों का सामना बुद्धि से ही किया जा सकता है ।
बुद्धि दी अन्धकार मं प्रकाश का काम करती है. । बुद्धि की
कमी से श्रावश्यक शारीरिक बल ओर अन्य साधन रखते
हुये भी व्यक्ति सफलता पाने में असमृथ होता है। बालक
जितनी सम्भावनाश्रों के साथ जन्म लेता है टन सबका विकास
User Reviews
No Reviews | Add Yours...