पलासी का युद्ध | Palasi Ka Yuddh

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Palasi Ka Yuddh by गिरिधर शुक्ल - Giridhar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ भारत पैें अंग्रेजों का प्रवेश को अपना व्यापार करने के लिए एक कोठी बनाने की आज्ञा दे दी ओर यह भी आज्ञा दिया कि मुगल-दरबार में उनका एक दूत रहा करे । इंगलिस्तान के बादशाह ने सर टामस रो नामक एक दोशियार व्यक्ति को अपना पहला दूत चुनकर मुगल-दरबार में भेजा । सर यामस यो खन्‌ १६१५ ईसवी में भारत पहुँचा और उसने अपनी नम्रता श्रौर सौजन्य हमारा सब्राट से अमरेजी व्यापार को बढ़ाने के लिये झनेक नई सुविधाएँ प्राप्त कर लीं । मुगल सम्राट जहॉगीर की छोर से सन्‌ १६१४ इंसवी में अंग्रेजों को कालीकट और मछली पट्टम में कोठियाँ बनाने की: आज्ञा मिल गई । उस समय भारत में रहनेवाले झंप्रेज चूं कि भारत सम्राट की प्रजा थे, इसलिए उनमें यदि कोई भगड़ा बखेड़ा उठ खड़ा होता था, तो देशी अदालतों में ही उसका फैसला होता था । अपरेजों को प्राथना पर सम्राट जहांगीर ने राज्य की ओर से एक आज्ञा इस आशय की जारी कर दिया कि आगे से अंग्रेजी कोठी के भीतर रहनेवाले किसी कमेचारी के अपराध पर अंग्रेज स्वयं उसका फैसला करके उसे दंड दे सकते हैं ! इस बात की झालोचना करते हुए प्रसिद्ध 'ंप्रेज इतिहास लेखक टारेन्स मुगल बादशाह के विषय में लिखता दै :- “बादशाह न्यायशील और बुद्धिमान था और उनकी आवश्य- ताओं को समता था । उन्होंने जो माँगा, उसने मंजूर कर लिया । उसे यह स्वप्न में भी 'गुमान न हो सकता था कि एक न एक दिन यहों अँप्रेज इसी छाटी सी जगह से बढ़ते-बढ़ते बादशाह




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