अस्तित्ववाद की सामाजिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि का समीक्षात्मक अध्ययन | Astitvavad Ki Samajik Tatha Rajanitik Prishthabhoomi Ka Samikshatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
303
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सदर्ध्षे मे आज के परिवेश के लिए उसे पुनर्जीवित कर रहे हैं। इस अर्थ मे उनकी
मान्यता है कि दर्शन सदा समकालीन होता है, यदि आज प्लेटो के किसी वैचारिक अश
को प्रतिष्ठित किया जाय तो वह आज के परिवेश मे प्लेटो हे प्राचीन प्लेटो नहीं |
स्पष्ठटत यास्पर्स अतीत के दर्शन को सत्ता की अभिव्यक्ति का एक साकेतिक
अभिलेख मानते हैं और दर्शन के इतिहास के मनन के माध्यम से वह अतीत के
दार्शनिकों से सलाप करने का प्रयास करते हैं।'” किन्तु इतिहास और अतीत के प्रति
जितना प्रेम यास्पर्स रखते हैं, उतना अन्य अस्तित्ववादी नहीं। वास्वत में देखा जाय, तो
इतिहास के प्रति जितना विद्रोह भाव अस्तित्ववादियों मे है उतना अन्य दार्शनिक सप्रदायो
में नहीं। फिर व्या कारण है कि इतिहास ओर एेतिहासिकता की दुष्टि को इतनी प्रधानता
दी जाय ? क्या केवल यास्पर्ख को ध्यान मे रखकर इतिहासपरक अथवा इतिहासवादी
दृष्टिकोणों को अप्रासगिक रूप से आरोप्रित किया जाय?
नहीं वस्वतुस्थिति दूसरी है। यह सर्वविदित है कि. अस्तित्ववाद मूलत ऐतिहासिक
परिस्थितियो तथा विज्ञानवाद ओर बुद्धिवाद के प्रतिपक्ष मे उभरा एक सशक्त दर्शन है
हीगल स्वय दर्शन ओर इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान थे ओर उन्होने पक्ष-विपक्ष सपक्ष के
त्रिक को इतिहास का भी सूर माना था। पुन विज्ञानवाद (011) भी कहीं न
कहीं इतिहास से घनिष्ठता से जु जाता है। क्रोचे, वाइकोकार, कोलिगवुड आदि अनेक
प्राकूतिक विज्ञानी दार्शनिक तो प्रत्यक्षत अथवा परोक्षत इतिहास की अनिवार्यता दिखलाते
हए उसकी दर्शन ओर विज्ञान से सार्थकता सुनिश्चित करते हैं। क्रोचें ने कहा है कि
दर्शन इतिहास का प्रणाली विज्ञान है। वे यह मानते हैं कि प्राकृतिक विज्ञान इतिहास
से पृथक होकर अमूर्तीकरण का शिकार हो गया है। यदि विज्ञान का एतिहासिक दृष्टि
से अध्ययन किया जाये और उसे मनुष्यों की गति का एक अश माना जाये तभी हम
उनकी सही प्रकृति को समझ पायेगे। समझने का अर्थ एतिहासिक रूप में देखना है ।। 9
कोलिगवुड वैज्ञानिक दार्शनिक है, किन्तु उनका सर्वाधिक बल मानव सस्कृति पर
हे । उनके अनुसार मानव के ज्ञान के लिए इतिहास ही श्रेष्ठ माध्यम है, न कि भौतिकी |
वे जननिक विज्ञान के साथ-साथ प्राकृतिक विज्ञान को भी मूलत एतिहासिक मानते हैँ।
अपनी पुस्तक 116 1468. ग कविश्न॑प्रा€ (1945) में उन्होने कहा है कि-किसी एक समय
में किसी अमुक-अमुक स्थान में अमुक-अमुक प्रकार के पयविक्षण किये गये, यह बताने
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