भारतीय राज्यतन्त्र में पन्थनिरपेक्षता की संकल्पना | Bharateey Rajyatantra Men Panthanirapekshata Ki Sankalpana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृथक्करण करना सम्भव नही है । मनुष्यों के कार्यो और विचारों पर धर्म के प्रभावों का अन्त कर ठना एक
अव्यावहारिक वात मालूम देती है |
धर्म ओर राजनीति के पारस्परिक सम्बन्धो की दृष्टि मे पन्थनिगपेक्ष राज्यो की टो श्रेणियाँ हो
सकती हैं। प्रथम वे, जो धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप नही करते तथा दूसरे वे, जो धर्म के आधार पर भेदभाव
नहीं करते ।
प्रथम श्रेणी के राज्यों में संयुक्त राज्य अमेरिका का नाम लिया जा सकता है, जहाँ धर्म और
राजनीति के वीच एक विभाजक रेखा खींच दी गई है हस्तक्षेप न करने वाले राज्य मे तात्पर्य ऐसे राज्य
से है जो किसी प्रकार के धार्मिक कार्य से सकारालक अथवा नकारालक रूप से कोई सम्बन्ध ही न रखता
हो अर्थात् राज्य ओर धर्म के वीच प्रत्यक्ष रूप से कोई सम्बन्ध न हो|
दूसरी श्रेणी के राज्य वे है, जो धार्मिक आधार पर भेदभाव नही करते । ऐसी व्यवस्था में राज्य
के लिए धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करना वर्जित नहीं होता, लेकिन ऐसा करते समय राज्य विभिन्न धर्मों के
वीच कोई भेदभाव नही करता । जहाँ तक भागत का मम्बन्ध है, वह विभेदरहित राज्य की ही श्रेणी मे
आता है! भारत में गन्य का अपना कोई धर्म नही है ओग यहां राजनैतिक सत्ता का अन्तिम स्रोत किसी
दैवी अथवा पारलौकिक शक्ति को न मानकर जनता का माना गया है। भारत का मविधान सभी
नागरिकों को विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता प्रन करता है। यह सभी व्यक्तियो को
अन्तःकरण की स्वतन्त्रता, किमी भी धर्म को अवाध रूप मे मानने, उसके अनुसार आचरण करने ओर
उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु भारत में राज्य धर्म से सम्बन्धित लोकिक
क्रियाकलापों मे हस्तक्षेप कर सकता है तथा यटि वे लोक-व्यवस्था व सदाचार या नैतिकता मे वाधक हां
तो उन्हे विनियमित कर सकता है ।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में पन््थनिरपेक्षता को परिभाषित काते हुए कहा ह -
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