सूरदास और तुलसीदास के काव्य का तुलनात्मक अध्ययन | Sooradaas Aur Tulasidaas Ke Kavya Ka Tulanatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय धर्म साधना के इतिहास में भक्ति मार्ग एवं इसके दर्शन
का चिशिष्ठ स्थान है । यधपि संहिता भाग के रचनाकाल तक उसके अस्तित्
का कोई उल्लेख नहीं मिलता है । वैदिक युग में यज्ञ अथवा कर्मकाण्ड के माध्यम
ते धर्मानुष्ठान हुआ करते थे, प्राकुत्तिक घटनाओं के मुल में किसी देवता की
कल्पना कर उसे प्रसन्न रखने के लिये यज्ञ आदि का विवेचन भी मिलता है |
अनेक भक्ति के संत~कवियी ने भिन्न-भिन्न प्रकार से भक्ति धर्म
पवित्र, आचरण और मानवीय आदर्श रुपकों का प्रचार किया जै भक्ति युग
की साधंकता कही जाती है । निराशा और अप्हायता के वातातरण में
ईश्वर की आत्था के प्रति शाति ओौर उत्साह की अनुमति के परिणाम रूतरूप
भक्ति का उदय हुआ । विचारक, संती, भक्ती, महात्मा कै ईश्वरीय
ज्ञान की उपपल्ति केद्वारा भक्ति के दार्शनिक विचारों को उजागर कर इस
माध्यम की चिशिष्ठता का आभास अपनी काव्य रघना के द्वारा कराया
जो आगे चल कई मतों कई वादों एवं कई प्रकार के संम्प्रदायों में बट कर
पल्लक्ति एवं प्रफुल्लित हू । यही इस युग की विश्रष्ता थी जो स्वर्ण काल
की निधि बनी । और तमाज के लिये शात्ति प्राप्ति का आधार |
पैं0 हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार भक्ति आंदोलन भारतीय
यिन्तन-धारा का त्वाभायिक चिकास है | नाध-सिद्धोँं की' साधना, अल-
तारवाद लीलावाद और जात्तिगत कठौरता, दक्षिण-भारत से आई हुपी
धारा में घुल मिल गई । यह आंदोलन और साहित्य लोकोन्गुक्ता एवं
सानवीय करूणा के महान आदर्श से युक्त हैं |
धनि विका, नान भादि पनि मता सतोम वो पिनि नन्दति तोति तिनि शितः सोति सिति नतो व सिनो वि पि ति नि न पि वि न या न विति = निमिना तिने सिनोति नि सतति त
1. की र-ड 10 हना सी प्रसाद द्विवेदी, प~ 17
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