फणीश्वरनाथ रेणू और नागार्जुन के कथा - साहित्य में लोक - चेतना के स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन | Faniishwarnath Renu Aur Nagarjun Ke Katha - Sahitya Men Lok - Chetana Ke Swaroop Ka Tulanatmak Adhyayan

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Book Image : फणीश्वरनाथ रेणू और नागार्जुन के कथा - साहित्य में लोक - चेतना के स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन  - Faniishwarnath Renu Aur Nagarjun Ke Katha - Sahitya Men Lok - Chetana Ke Swaroop Ka Tulanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेतना की प्रमुख विशेषताएं हे- निरन्तर परिवर्तनशीलता अथवा प्रवाह, इस प्रवाह के साथ-साथ विभिन्‍न अवस्थाओ मे एक अविच्छिन्न एकता ओर साहचर्य । 1 लोक चेतना साधारण जनता की समूयी संवेदनात्मक ओर वेचारिक मानसिकता, सम्बन्ध ओर मूल्य-बोध को लोक चेतना कहा जा सकता है। साधारण जनता के सम्पूर्णं संस्कारौ, गतिविधियो, सोचने के दंगों, क्रियाकलापं, कलात्मक प्रयासो, धार्मिक-सास्कृतिक क्रियाओ आदि के पीछे जो चेतना काम करती हे वह लोक चेतना ही है। यह चेतना किसी से अभिभूत नहीं है अप्रभावित निष्कलुष। अपने अच्छे बुरे रूप मे जेसी है वेसी ही प्रस्तुत भी होती है। न जाने कितने युगों से एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को दाय स्वरूप मे प्राप्त यह चेतना लोक जीवन की सही पहचान है।* मानव ने जन्म लेते ही अपनी आदिम अवस्था में जो मानसिक उपलब्धियां प्राप्त की वे उसकी सहज मानवीय प्रकृति बन गयी। वे ही उत्तराधिकार के रूप में मानव-मानव मे अवतरित होती चली जाती है। इस प्रकार लोक चेतना परम्परा के प्रवाह में आये हुए आदिम अवशेषो को अपने मे समाहित किये हुए सहज रूप में अभिव्यक्त होती है। इसमें एक ओर आदिम मानव की मूल प्रवृत्तियो के दर्शन होगे तो दूसरी ओर विभिन्‍न सामयिक युगीन परिस्थितियों के। क्योंकि परम्परा में रहने से इन अवशेषो पर उनका प्रभाव भी पड़ता है। लोक चेतना के मूल स्वरूप की पहचान हेतु आदिम समाज को समझना जरूरी हो जाता है क्योकि लोक चेतना का मूल स्वरूप आदिम समाज में ही सुरक्षित मिलता है। 00 8 2 8 0 81 8. ए. 1 8. ए १ 8. 1 ए 7. 7 १ 8. १. 2. ए 8. 7. 8. 2 ए. 7 2 त 7 ए ए ए. ए ए. ए. 8. 7 8. 1 8 ए 8 ए 8 2 1 हिन्दी साहित्य कोश भाग-1, प0-247 स0 धीरेन्द्र वर्मा डा0 ऊषा डोगरा हिन्दी के आंचलिक उपन्यासौ का लोकतात्विक विमर्श, पृ0-182 | लगी *-4




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