ऋग्वेद - संहिता के विभिन्न व्याख्याकारों की व्याख्या - पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन | Rigved - Sanhita Ke Vibhinn Vyakhyakaron Ki Vyakhya - Paddhatiyon Ka Tulanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
555
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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वेद को विद्या भी कहते है । वेदो मे विशाल ज्ञान की राशि विद्यमान् हे । अत ज्ञान का स् ग्रह-ग्रन्थ
होने से इसे वेद या विद्या भी कहते हे । इसके अतिरिक्त पुराण, न्याय, मीमासा, धर्मशास्त्र, शिक्षा, कल्प,
व्याकरण, निरूक्त, छन्द ज्योतिष् ओर ऋग्. यजु , साम ओर अथर्ववेद, इन चौदह विद्याओं मे वेद की गणना
होने के कारण भी वेद को विद्या कहते हे |
वेदो को “मन्त्र भी कहते हे- मन्त्रा मननात् अर्थात् वेदं को मनन करने के कारण इसे मन्त्र भौ कहते
है | इस प्रकार आध्यात्मिक, आधिदेविक, आधिभौतिक एव अधियज्ञपरक विचारो के मनन से वेदो को मन्त्र
कहते हे |
वेदो को “छन्दस्* या “चन्द“ भी कहते हे- “छन्दासि छादनात् अर्थात् वेदमन्त्र छन्दोमय है, अत वेदो
के छादन (आवृत, आवरण) करने से इसे छन्दस् भी कहते हे । मृत्यु से भयभीत देवताओ ने स्वय को वेदिक
छन्दो से आवृत कर लियाथाया ढक लिया था अत वेदो कानाम छन्द या छन्दस् पडा वेद के पर्याय
के रूपमे मन्त्रो के द्वारा छादन के कारण छन्दस् या “चन्द शब्द का प्रयोग अनेक ग्रन्थो में प्राप्त होता है|
अष्टाध्यायी मे “बहुलं छन्दसि , सूत्र अनेक बार आया है, जिसमे छन्दसि शब्द का अर्थ वेद मे हे |
निरूक्त के रचयिता यास्काचार्य ने ४छन्द आच्छादने धातु से इस शब्द को निष्पन्न माना हे | शतपथ-ब्रह्मण
मे छन्दस् शब्द का निर्वचन ४छन्द प्रीणने धातु से किया गया हे । छन्द का अर्थ है- बन्धन | निश्चित
नियम मे घे हुए शब्द-समूह को छन्दस् कहते है|
कछ विद्वान् पूजा अर्थ मे पठित छन्द या छद् धातु से छन्दस् शब्द को निष्पन्न मानते है | इनके
अनुसार वेदमन्त्र को छन्दस् इसलिए कहा जाता हे कि इन्दी के द्वारा देवताओ की पूजा होती है, अथवा
हमारे द्वारा पूजनीय होने के कारण भी वेद छन्दस् हे
वेदो को आगम अर्थात् आगम प्रमाण या शब्द प्रमाण भी कहते है आगम शब्द मे आ का अर्थ हे-
मर्यादा, सीमा, गमः का अर्थ है- मन्त्रो के अर्थ का बोधक । इस प्रकार जो ग्रन्थ सब ओर से एेहिक तथा
आमुषिक सुख की प्रापि के साधनभूत उपायों का ज्ञान करावे उसे आगम या शब्द प्रमाण कहते हे।
वेदों को “निगमः भी कहते है, निगम शब्द मे नि का अर्थ हे निश्चयपूर्वक या निश्चित रूप से, गम का
अर्थ है- मन्त्रं के अर्थ का बोधक | इस प्रकार जो ग्रन्थ निश्चित रूप से या निश्चय पूर्वक एहिक तथा
अमुषिक सुख की प्रापि के साधनभूत उपायो का ज्ञान या बोध कराये उसे निगम कहते हे।
आगम ओर निगम दोनो शब्द पद-रचना एवं अर्थ की दृष्टि से लगभग समान ही हे | अन्तर मात्र आ
ओर नि उपसर्गा का है । यास्काचार्य ने निरुक्त मेँ जितने भी उदाहरण वेदों से दिये हे उनमें प्रायः सर्वत्र
निगम शब्द का प्रयोग किया हे । “निगम' शब्द उन स्थलों पर वेद का ही वाचक हे।
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