अनिरुद्ध | Aniruddh

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Aniruddh by Pt. Radheshyam Kathawachak - Pt. राधेश्याम कथावाचक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ट धस. बेल बूंदे धर फूल पत्ते सब उसके बशीसूत दो जाते हैं | जिस धकार सूखी खेती. को पून हरा फर्देता हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य के थके हये अं को शुगर प्रोत्साइित करदेतां है । जिस प्रकार शथिक वर्षा खेती को हानि पहुंचाती है, उसी प्रकार कुचिम शोर शप्राकृतिकत शृङ्गार रेखकी अधिकं माचा मयुम्य में आलस्य, प्रमाद्‌ रारि उत्पन्न करकः उसे जीवन युद्ध के सर्दथा श्रयोग्य चमा देतीदे। यही कारण है कि हमारे दशक नघयुवक्ष नाटक देखकर अपना चरित्र सुघारने फी झपेक्षा!' उसे बहुत अलदी बिगाड़ लेते हैं। नाटक के शन्य रख उनमें कोई उच्चसाव प्रकूर करने की टड़ता नहीं रखते, कचल म्पा से नक च्ल चोभिया जाते है । दृठ नारक पं श्छंगार रस है छोर होना मी चाहिये था, परम्तु चह उपयु दोषों से रहित है । यरि प्मकूत्तिक सदयं का रसास्वादन करना दो, तो ऊषा के भिर जनित वाक्य को पट्‌ जाये । भेमको कारशा ऊषा कः मन उदधि ती दोता है, परन्ु सपु के खमान उस्म गम्भीरता विद्यमानं स्हती दै! नाटक में दास्यरलस है, १ इसके नाटक का स्टेज पर पास धोना डासम्भव है । कौदे मठुष्य भी जावन में सदा गन्सीर पिचासों और उन्ध भावों में सिंमग्न लददीं रद सऊता | प्र ४ उसवो लिये झनिवाय होता हैं कि समय समय पर बह भिन्न <स की श्ास्यादन करे । दख नारक में व्‌ गदा सज्ञाक .और हंसी दिल्लगी नहीं है जिसको हम श्चपनी सन्तान अभर स्त्रियौ कां दिखाते हुए मिभकें, बंदिक हंसी उस कोरि की है मिस पर 'ान- पढ़ों की गा श्रद्धा हनी चा दिये । वद हंसी दि मनोरंजन के निमित्त नही है। उसफा युद र्थं मी है । उसके बदमेसे देके पाखंडो साघुश्र र मदन्ती की ज्रविच अन्धविश्वास, कपय्‌ शौर छल क! वस्तिर्विक सिज खींचा गया है । ककल सभी मकर करदिया गया (त ज्ञाति कं नेता चारै तो उनमें पचार करक उनको जात्यु: | 1 चर देशीलति का ओर लगा सकते हैं ल ^




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