वसुबन्धु के दर्शन का समीक्षात्मक अध्ययन | Vasu Bandhu Ke Darshan Ka Samikshatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय-२ योगाचार विज्ञानवाद के दार्शनिकों का संक्षिप्त परिचय बौद्ध धर्म के विकास के इस दीर्घकालीन इतिहास में दार्शनिक समस्याओं पर चुप्पी साधे मूल बौद्ध धर्म को जिन महान आचार्यों ने प्रौढ़ दर्शन के रूप में विकसित किया उनमें अश्वघोष, नागार्जुन, मैत्रेयनाथ, असंग, वसुबन्धु, स्थिरमति, दिड्नाग, धर्मकीर्ति, विनीतदेव प्रमुख हें । अतः शोध प्रबन्ध के विषय को सम्यग्‌ रुपेण समड्ने के लिए इन दार्शनिकों के व्यवित्तत्व ओर कृतित्व का संक्षेप में वर्णन किया जाता हे। वसुबन्धु ने सर्वास्तिवाद का विवेचन करने के लिए “अभिधर्मकोश' नामक सवोत्कृष्ट ग्रन्थ लिखा | जिसमे उन्होने सर्वास्तिवाद दर्शन के सभी सिद्धान्तो का सर्वेत्कृष्ट विवेचन किया है । किन्तु वे वहीं नहीं रूके । उन्होने प्रौढ़ावस्था मे अभिधर्म ज्ञान के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ होने के बाद अपने अग्रज आर्य असंग के सानिध्य मं आकर उसका परित्याग कर दिया ओर साथ दही यह भी निश्चय किया कि जिस जिह्वा द्वारा महायान की निन्दा की गयी है उसको काट देना ही उचित होगा| किन्तु आर्य असंग के इस प्रकार उद्बोधनं करने पर कि जिस जिह्वा द्वारा आपने महायान की निन्दा की हे उसके द्वारा उसका मण्डन कीजिए। उनके इस उद्‌बोधन पर उन्होने महायान बोद्ध दर्शन के योगाचार विज्ञानवाद का गम्भीर अध्ययन किया ओर शविज्ञप्तिमात्रतासिद्धि नामक ग्रन्थ की रचना की, जो योगाचार विज्ञानवाद का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है ओर जिसके फलस्वरूप योगाचार विज्ञानवाद का प्रभाव समस्त बौद्ध संसार में फैल गया और जो अब तक अनेक देशो में प्रकाश का कार्य कर रहा है। अब प्रश्न उठता है कि वे कौन सी विशेषताएं हैं जो महायान में हैं किन्तु हीनयान में नहीं हैं और जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने हीनयान में अपनी सर्वोत्कुष्ट प्रतिष्ठा का परित्याग कर महायान 11




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