आयुर्वेदिक चिकित्सा सार | ayurvedik chiktsa sar

ayurvedik chiktsa sar  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ओपषधिगुणधमंषिवेपन - फ कजली का उपयोग करे। किन्तु याद सूजन गम्भार दो, 'और अत्यन्त दी वेद्ना ोती दो, जिसके कारण उदर चढ़ छाया हो तो अन्य शोथष्त औपधियों का उपयोग ठी« दोता है । चदाइरणाय्ं उसी अवस्था में ऊपर से रक्तचन्दन, बच या मिलाचा का लेप करें श्र अन्दर से ५ष्ण जल की व!ष्प से गला सकें । किसी-किसी को बार-बार जुराम या सर्दी दो जाया करती है नाक बहने लगती है, गले के श्रन्दर खुनलाइट 'गौर खासी होती दै। कज्नली का सेवन करे । कलजी तावूता स्वरख (खाने के पान के रख के साथ) से सिलाकर चाठे । यदि जुकाम के कारण फुप्फुप्ों से दद पैदा हो राया दो, खांखते समय छाती को रोगी श्रपने हाथा से दूबाय रखता दो उसकी छाती श्र पशनियों में सई टोचने के समान रद-र्‌दद कर. न श उसे किन्सि ( (०८७४५ ) कहते है । यह रोग युवावस्था में विशेष दोता है | तीन्र ध्रामदात से या कभी -फभी श्ामवात के पूर्घरूप में शी यह देखा जाता है । श्रकस्मात्‌ भी यह रोग हो जाता है । गल शुष्क डष्णु सालूम छोना, शिर:शूल, जिह्दा सलीन, दुरगन्धयुक्क श्वास, शवडे के नीचे की श्रन्थि सूजी हुई, उनर १२४ श्र श तक इत्यादि क्षण होते दे द ञ्ड प्चि कर हक र्ज र्णु च हद हें | यद ससगंज भी है । कमी-फतो चिर्कारी शोर जीर्स होकर चर्प में हु ७ ७ क७ न्ञ् कटे बार यह रोग उसी रोगी को होता है उसे ((ए1707010 प005- “-जेखक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now