राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में संतकाव्य का अध्ययन | Rashtriya Ekta Ke Sandarbh Me Santkavya Ka Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय धर्म-शास्त्रो ने अणर “सर्वे भवन्तु सुखिन , सर्वे सन्तु निरामया ` की
चर्चा की है तो आचार-व्यवहार और जीवन-शैली मे उसे उतारा भी। महान् क्रोतिकारी
सत कबीर ने जिस साहसपूर्ण तरीके से हिन्दू-मुसलमान के बीच फैले पाखण्ड और ढोण
का सामना किया, उन्होने इन दोनो सम्प्रदायो की एकता के माध्यम से सामाजिक,
सास्कृतिक ओर धार्मिक एकता का जो शखनाद किया । उसकी अबुगूज अभी तक लाखो
दिलो मे महसूस की जा सकती दै। सत तुलसीदास ने “मोणि के खडबो, मसीत मे
सोडइबो, लेवे के एक न देवे का दोऊ' के माध्यम से जाति-पाति पर प्रहार किया ओर
सीय राममय सब जग जानी- कर प्रणाम जोर छुग जानी के माध्यम से विघटन के
कगार पर खड़े तत्कालीन राष्ट्र को राष्ट्रीय एकता का मूलम दिया । मुस्लिम शासक
अकबर के दीने इलाही' के माध्यम से भारतीय जनमानस को जो सदेश दिया उसे
अगर देखे तो (क) किसी व्यक्ति को जबरदस्ती एक धर्म से दूसरे धर्म मे न लाया जाय
(ख) प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म, मदिर ओर धर्म-स्थल निमणि की स्वतत्रता (ग) हर
व्यक्ति को धर्म-परिवर्तन की छूट (घ) किसी विधवा को जबरदस्ती सती न बनाया जाये ।
वस्तुत अकबर इस्लाम ओर हिन्दुत्व दोनों का हिमायती था किन्तु दोनों की कट्टरता से
उसे सख्त नफरत थी । उसने कटृटरपथी बनने की छूट किसी भी धर्म को नहीं दी | यही
वजह है कि उस काल मे भी देश ने चौतरफ़ा उन्नति की । पडित नेहरू के शब्दो मे अणर
मुगल काल के आकलन को देखें तो जब तक मुगल बादशाहोँ ने कौमी एकता का साथ
दिया तब तक उनकी मजबूती बनी रही ओर जब मुसलमान हाकिम की तरह से राज
करना चाहा तो इनकी सल्तनत बिखर गयी ओर अन्तत॒ भारत पर अग्रेजो का
आधिपत्य हो गया |
राजा राममोहन राय, रामकृष्ण परमहस, महर्षिं दयानंद, स्वामी विवेकानन्द,
चैतन्य महाप्रभु अथवा आदिगुरू शकराचार्य की सोच ओर कार्यपद्धति को अगर देखे तो
स्पष्ट है कि किसी भी धर्मं अथवा धार्मिक परम्परा ने शासक अथवा समाज को हिंसा,
शोषण, गुलामी ओर स्वच्छन्दता की इजाजत नर्टी दी। सब ने देश की एकता, अखण्डता,
सहिष्णुता को ध्यान मे रखकर तदनुरूप आचरण किया ओर चारों दिशाओ मे इस देश
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