हमारे गद्य-निर्माता | Hamare Gadya Nirmata

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Hamare Gadya Nirmata by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 शली ७ सनकी इस लीन कपल पीस वी ~+ ++ के वी + क ली की की 4 1-4-14 + ~ प्रभावान्वित होकर हरिश्चंद्र ने गद्-लेखन की उस शेली की अवतारणा की है जिसे हम उनकी पुस्तकों में पाते हैं । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक लेखक की शैली पर निजी रुचि, स्वभाव उदेश्य श्रौर श्रादशे का प्रभावतो एक ओर पढ़ता है और परिस्थिति तथा विषय का बाहरी प्रभाव दूसरी श्मोर। श्रतः किसी लेखक की शैली का अध्ययन करने के पू हमें निम्नलिखित बातों को जानने का प्रयत्न करना चाहिए-- (१) परिस्थिति अथवा समय जब उसने ध्रंथ-रचना आरम्भ की । (२) रुचि, स्वभाव, उद्दश्य और आदशे। इन पर परिस्थिति और संस्कार का प्रभाव पड़ेगा । (२३) लखक का प्रिय विषय । इन तीनों बातों को सममन के पश्चात्‌ वाक्य-विन्यास के अध्ययन की आवश्यकता होती है । वाक्य-रचना के विषय में, साधारणतः यह देखना चाहिए कि लेखक ने वाक्य छोटे लिखे है अथवा बडे वाक्य- उनका संगठन केसा दै; समुच्चय बोधक (्रौर' का अधिक विन्यास प्रयोग करनेसे वाक्यों में शिथिल्लता तो नहीं आगई है; वाक्य जटिल श्रौर दुर्बाध तो नहीं हैं, जान-बूक कर उन्हें बढ़ाने या जटिल बनाने का प्रयत्न तो नही किया गया है, अनावश्यक बाक्यांशों का प्रयोग तो नहीं हे । साथ ही यह भी देखना चाहिए कि लेखक ने मुद्दाविरों का समुचित प्रयोग किया है अथवा नहीं ओर उनसे क्या लाभ अथवा उनके न होने से क्या दवानि हुई है । अन्तिम बात यह है कि अपने विचारों को प्रभावोत्पादुक ढंग से व्यक्त करने के लिए उसने केसे वाक्य लिखे है । प्रायः लेखक संयुक्त ्रथवा मिश्रित वाक्यों का प्रयोग करके अपना उदेश्य व्यक्त करने वाला प्रधान उप. वाक्य अत में रखते हैं। इससे पाठक की उत्सुकता बढ़ जाती है । कभी-कभी कई वाक्यों में प्रश्नवाचक चिह्न लगाकर अपनी बात पर जोर दिया जाता दै। कोइ-फोइ लेखक ( जैसे हमारे बाबू जयशंकर प्रसाद्‌ ) माटकीय दंग से वाक्यगरचना करके उन्हे प्रभावोत्पादक बनाते हैं । श्रन्त में व्यंग्य और कटाक्ष की चुभती हुई फवतिरयाँ भी--यदि हों




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