चेतना | Chetana
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बारह
जब साकार कल्पना में तुम
प्राणो में श्रा बसौं हमार,
टूट गए तब सदसा तड़-तड़
कुटिल काल के बन्धन सारे,
सव सामाजिक परिभापायें
दिन्न-मिन्न हो गड क्षणो मे,
प्राण ! देखता हूं में तुमको
जग के सब चल-अचल कणों में ,
आज तुम्हारा एक रूप, बनकर
रूप, कण-कण में छाया !
बाज तुम्हारी सुमधघुर सुधि ने
फिर से तुम्हें समीप चुलाया !
मेरा ज्ञान तड़क कर बोला--
'मूरख, यह सब तेरा आम है !'
किन्तु भावना ने दुलराकर कहा
“स्नेह का यही नियम हूं
स्नेह न ाधघारित हो सकता
कभी पाधिवी उपधानों पर;
भौतिकता से परे प्राण जब
श्रवलम्बित होता प्राणों परः
प्रस्तर की प्रतिमा में तब
भक्तो ने निज भगवान बसाया !
श्माज तुम्हारी सुमधुर सुधि ने
फिर से तुम्हें समीप बलाया !
तना
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