फिरदौसी | Phiradausi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
55
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जि. जाषुवा - Ji. Jashuva
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दुर्गानन्द - Durganand
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उस विचित्र स्वप्नस्सति में कवि ने रात बिता दो जब
सूरज ने फूँक उडादी पूर्वी गिरि पर कुकुम घूली तब |
हिम कर सोधा पश्चिम गिरि में खत हो भस्मच्छबि में
तारा मंडल बस ड्रब चले फेनिल-से उस नभ में।
खद्तानी - महलां पर बज उठा पक नगारा
आमलित निनदो से मूज उरी मखजिद सारी।
इय-द्ाला से हिला केश घ्ाडेने ललकार,
कचघि बैठे यह प्रांगण के स्वर्णात्न पर मन मारे |
पक तभी फारदीक जो संभ्रम सकुल हो घाया
बोला--स्वर उस का गदू गद, कंपित उसकी काया
कविवर ! दोडा सुख काखुदर दम्य तुम्हारा द्रया
कद कर आने पच बढाया कवि-पल्लीका लिख भेजा ।
करचरणों को जीवित प्रतिमा
वषत्रय का लाल दुलारा
पुत्र नाम का पहला प्यारा
चला गया अब कोन सद्दारा'!
इदय थाम कर पत्र पढ़ा ता
अंगों में दुख कष्ताप बढ़ा |
गुम शुम उस तुक नगर की ओर
दरीघ्न चङे तव चरण बढ़ा ।
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