पथचिन्ह | Path Chinha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री शान्तिप्रिय द्विवेदी - Shri Shantipriy Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का धारण ओर पोषण । शद्धा वस्तुतः सब प्रकार के भावों का प्रतीक
हं । शरद्धा अथवा साधसे संपादित कमं ही समथं होता ह, सफल होता
है-श्रदेव श्रद्धया करोति तदेव वीयं वत्तरं भवति (छान्दोग्य ०)। बुद्धि.ओर
श्रा के' असामञ्जस्यसे ही संसार मं नाना प्रकार के उत्पात खड़े होते
हं । बुद्धिवादी मानव जब शद्धा का अनुशासन नहीं मानता ओर हृदय-
हीन होकर वत्तंमान युग के सबसे बडे लक्ष्य ' अथं को ही परमाथं समभ
कर स्वायत्त करना चाहता है तभी एेसा दुरन्त संघं उठ खड़ा होता
ह । इस दावाग्नि का शमन शद्धा ही करती है--
जहाँ मर ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसतीः;
उन्हीं जीवन-घाटियों की में सरस बरसात रे मन !
--('कासायनी' : श्रद्धागीत) ।
श्री दास्तिप्रिय द्विवेदी ने इसी अवमानित श्रद्धा के भाव को संस्कृति
और कला के माध्यम से पुनः प्रतिष्ठित करने की विचारणा शत शत
भावप्रवण वचनों में उपस्थित की है ।
वे आज कल की दिक्षा-दीक्षा से भी सन्तुष्ट नहीं हें । उनकी यह
आकांक्षा ह किं जेसे आधुनिक विद्यालयों से विद्याप्नातक निकलते हे वेसे
ही ब्रतस्नातक भी निकले, क्योकि संसार को इस समय ब्रतियों की
आवश्यकता अधिकं हं । रामचन्द्र “सम्यग् विद्यात्रतस्नातः' थे । इसीलिए
रामराज्य सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाताहे
मेरा विश्वास हं कि यह पुस्तक जैसे मुभे प्रिय लगी है बसे ही मेरे
समानधर्मा प्रत्येक पाठक को प्रिय लगेगी ।
शान्तिप्रिय ने अपने हृद्गत भावों की तात्विक व्यञ्जना के किए
कुछ नये दाब्दों की भी सृष्टि की है जो इलाध्य है । कहीं-कहीं कुछ
शाब्दिक त्रुटियाँ रह गई हें जिनका संद्ोधन आवदयक ह ।
काशी,
+ ८.६ केशवप्रसाद मिश्र
१२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...