गेरू की लिपियाँ | Geru Ki Lipiyan

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Geru Ki Lipiyan by अमरनाथ श्रीवास्तव - Amarnath Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गेरू की लिपियाँ छन्द हुए होते सम्वाद हुए होते प्रचलन के आगे अपवाद हुए होते न बँधे हुए पानी में हलचल क्या होती एक लहर अनहोनी कहाँ तक भिगोती खोखली हँसी हँसती बालू-बालू फंसती रेत की नदी के-- अवसाद हुए होते @ @ गेरू की लिपियाँ / १७




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