प्रसाद के नाटक | Prasad Ke Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रसाद कं नाटक भर
यश्लोधमंदेव
उपर्युक्त सूची कुछ स्पष्टीकरण की श्रपेक्षा करती है । यशोधमंदेव नामक नाटक
प्रसाद ने विज्ञाख से पूवं लिखा था श्रौर यह बहुत बड़ा नाटक था । इसके प्रकाशित
किये जाने की सूचना उन्होंने विशाख की भूमिका में दी है । किन्तु यह नाटक प्रकाश में
भ्राने से पूवं ही नष्ट कर दिया गया । इसका कारण यह बताया जाता है कि जिस ऐतिहासिक
पष्ठभूमि पर उन्होंने अपने कथानक को खड़ा किया था, उस पृष्ठभूमि की ऐतिहासिकता को
विद्वानों ने भ्रनेक प्रमाणो के श्राधार पर श्रमान्य ठहराया । ग्रतः ग्रनैतिहासिक पृष्ठभूमि
पर लिखे गये नाटक का प्रकाश में प्राना प्रसादने भ्रवांदनीय माना श्र उसे नष्ट कर
डाला।
अग्निमित्र
श्रग्तिमित्र नामक नाटकं के सम्बन्ध मे लोगों को साधारणतया कुं भी नहीं मालूम ।
यह् नाटक उन्होने इ राघती उपन्यास लिखने से पूवं लिखना प्रारम्भ किया था श्रौर
इसका कथानक भी वही था जो इरावती कौ पृष्ठभूमि है । उन्होंने उसके दो-तीन
दृष्य लिख भी डाले थे । उसे देखकर श्राचायें रामचन्द्र शुक्ल ने सलाह दी कि उस
कथानक पर नाटक न लिख कर उपन्यास लिखा जाय । उनकी राय मानकर प्रसाद
नें इस नाटक का लिखना स्थगित कर इरावती उपन्यास लिखना श्रारम्भ किया था
किन्तु दैव के दुविधान से वह भी पुरा न हो सका । इस नाटक का जो भ्रंश उन्होंने लिखा था,
वह उनके स्वर्गवास के पदचात् देनिक श्राज' के ३० श्रक्टूबर सन् १९४४ कै श्रंक
मे प्रकारित हुश्रा है ।
इन्द्र
इन्द्र नामक नाटक लिखने का श्रायोजन प्रसाद श्रपने जीवन के श्रन्तिम दिनों में कर रहे
थे । इस नाटक मं उनका त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप कौ हत्या श्रादि का एतिहासिक ढंग पर
विवेचन करने का विचार था। इस नाटक की भूमिका उन्होने तैयार भी कर ली थी; किन्तु
वें अपनी इस कृति को साकार रूप न दे सके । उनकी यह भूमिका काडी नागरी प्रचारणी सभा
द्वारा प्रकाशित कोदोट्सव स्मारक ग्रन्थ में प्रकारितहुश्राहै। नागरी प्रचारणी पत्रिका
में भी यह् प्राचीन भ्रार्यावतं श्रौर उसका प्रथम संश्नाढ. शीषक से प्रकारित हुश्रा है ।
नाटकों के विषय
इस प्रकार प्रसाद्र के. केवल तेरह नाटक हमारे सामने द । इनमें श्राठ एतिहासिक,
तीन पौराणिक श्र दो प्रतीकात्मक हें । पुराण भी इतिहास ही ह् रौर प्रसाद उनको
इतिहास की दृष्टि से ही देखते थे । इस कारण एक घूँट श्रौर कामना को छोड़कर उनके
सभी नाटक ऐतिहासिक ही कहे जायेंगे ।
कालक्रम
काल-क्रम से प्रसाद के नाटकोंकोदो खंडों मे विभक्त कर सकते हें । एक तो वे
जो सन् १९१० श्रौर १९१५ के बीच लिखे गये ्रौर दूसरे वे जो सन् १६२२ के बाद रके
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