भगवान रामकृष्ण धर्म तथा संघ | Bhagavan Ramakrishn Dharm Tatha Sangh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
109
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(> भगवान रामह्कृष्ण
बार बार यह भारतमूमि मूरछापिन्न अर्थात् ध्मठुप्ता हुई है और
बारंबार भारत के भगवान ने अपने अवतार द्वारा इसे पुनर्जीवित
किया है। किन्तु वतेमान विषाद-रात्रि की तरह-जिसके बीतने में अब
घडी दो घड़ी की ही देर रह गई है, किसी भी अमावस्या की रात्रि
ने इस पुण्य भूमि को आच्छन नहीं किया था । इस पतन की गम्भी-
रता के सम्मुख पूर्व के सब पतन गौ के घुर-चिह मेँ भरे जर के
समान हैं। और इसीलिये इस प्रबोधन के प्रकाश के सम्मुख पू के
सब पुनर्बोधनों का प्रकाश सूर्य के सम्मुख तारागण के प्रकाश के
समान है। इस पुनरुत्थान के महावीर्य के सम्सुख प्राचीन काल का
वार् वार् ठन्व वीयं बालकौ की रीटा-सा जान पडगा |
पतनावस्था मे सनातन धम के समस्त भाव अधिकारी के अभाव
से छित्त भिन्न होकर छोटे छोटे सम्प्रदायों के रूप में रक्षित रहते थे, ओर
उनके अनेक अंश छुप्त भी हो जाते थे ।
दस नव उत्थान में नवीन ब्र से बी मानव-सन्तान, टूटी ओर
बिखरी हुईं आत्मविधा को एकत्रित कर उसकी धारणा और अभ्यास
करने में समय होगी और साथ ही छुप्त विदा के पुन: आविष्कार करने में
भी । इसके प्रथम निदशन-सखरूप परम कारुणिक श्री भगवान सर्वे युर्गों
की अपेक्षा समधिक पूर्ण, सर्व-भाव-समन्वित ओर सवै पिधार्ओ से युक्त
युगावतार् के रूप में प्रकट हुए ।
इसी इस महायुण के प्रत्यूष काट में सब भावों का मिलन
होता है ओर यदी असीम अनन्त भाव, जो सनातन शाख और धर्म
मे निहित होते हए भी अव तक छिपा था, पुनः आविष्कृत होकर उच्च
नाद से जन-समाज में घोषित होता है।
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