निजानन्द | nijanand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
352 KB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २६)
शाके जे दासि हैः सवके षे है दास
सव ही उनके दास है, जिनकी दासी अश् ॥
जिनकी दासी आशु पूज्य सव के वे होते ।
निश्चिन्त निदधम्द, जागते सुख से सोते ॥
चित्त | बात ले मान, मित्र | भज पूर्ण निराशा ।
सादर भज विश्वेशु, परणं हो सव ही आश! ॥
(३० )
ब्रह्मादिक के लोक भी, नही दुःख से मुक्त ।
नश्वर तो है सवं ही, कुं रागादिक युक्त ॥
कुछ रागादिक युक्त, वहां सुख ना हो सक्ता ।
काल खड़ा जरह शीश, कौन सुख से सो सक्ता ॥
चित्त | घात ज्ञे मान, मती चाहे स्वगादिक ।
इन्दरादिक हैं तुच्छ, सतस्य नाही बह्मादिक ॥
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