पौराणिक महापुरुष | porandik mahapurush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३)
दुख से मथ सा उटा । उन्होंने ब्राहमण से हाथ जोड़ फर कहा,
सद्दाराज यदि झाप इस चालक को भी खरीद लें तो ्रापी युम
पर बड़ी कृपा हो । श्राह्मण फो देया श्रा गई । उसने उचितं स्वर्ण
सुद्रायें देकर वालक को भी खरीद लिया। फिर क्या ! फिर तो
रानी राज्ञा की परिक्रमा कर कुमार सदित त्राह्मण के साथ चलने
के लिये तैयार हो गई । राजा का कलेजा काँप उठा । उनके प्राणों
के झन्दुर एक बेकलीसी दौड़ गई। वे एफ विल्षिप्त मनुष्य की
भाँति रानी की श्रोर देखने लगे। किन्तु इससे क्या होता ?
रानी दासी के रूप में 'झत्र तो श्राह्मण की हौ चुकी थी ब्राह्मणः
राजा के दुःख श्र उनकी ब्याछुलता पर ध्यान न दे कर रानी
. छौर कुमार को ले कर छापने घर की ओर उलता यना ।
राज्ञो अभी वियोग के इस गददरे सागर में निमम ही थे कि
ब्राह्मण रूपघारों विश्वामित्र जी फिर वहाँ घा पहुचे श्रौर उन्होंने
राजा से पनी दश्धिया माँगी । राजा ने उत्तर दिया, सी घोर
पुत्र के.वचने से जो संपत्ति श्राप्त हुई है, उसे ले जाइये । किन्तु
विश्वासित्र को उतने हो से तो संतोष होने चाला नहीं । रन्दोंने
कहा--राजन, यदद दक्षिणा तो बहुत थोड़ी है । '्ापने कह्दा थो,.
कि मैं राजसूय यश फरने का संपूर्ण धन शांपको दूँगा !
हाँ कहा था--रजां ने उत्तर दिया -भौर अब भी कहता
हूँ। मेरा शरीर वच गया है, में उसे वाज़ार में वेंचकर 'छापकी
दक्षिणा की रकम पूरी फूँगा। किन्तु इसके लिये युपे इ.
समय और 'वादिये 1
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