श्रीमद राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला | Shreemad Rajchandra Pranit Mokshmala

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Shreemad Rajchandra Pranit Mokshmala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ चाचा तत्वमुख शिक्षापाठों दाखल करेला छे. श्री मोक्षमाठानी वीजी तथा आा जीजी आइतिना अगि अमे वचर वनी क्षमा चाहिये छिये, के अनिवार्य कारणोने ठट, शफदुधारणानी खाभीने छह वीजी आवृति वहु दौोपवार्गी र हती; पेटी आवरृति करतां पण वधार दोपवानी हती; अने आ बीजी आतरति पण दोष रहित थइ शकी नथी, शुद्धि परचक्र आ साये दकरेषं डे, परण छे एषीनी आवृत्तिमां आ के आदा दोपो न आते, न रहे, एम थवा करवा आशा राखिये छिये, घणीवार लोको जे वात (साची के खो) पोते मानी वेढा होय तेने अणसमजथी प्रथन वात साये सेनभेर करी दे, साची वातनी तो हरकत नहि, पण खोटी वातना सेग्मेकथी अयने वहु हानिं पचे छे; विचक्षण जनो पण आ शुखवो खाय ॐ, तो सामान्य जनोल तो कदं ज श्रं १ ग्रंथमां रहेढो आशय ते प्र॑यना गांचनारा के सांभल्नार। समजफेर स्पे ग्रहण करे« तेथी वांचनारा के सांभलनारा पोताने तो सलयनी छाभ नथी थतो, पण उलट प्रथने तेना वर्ह-विचार-विषयने, तेना कत्तौने अन्याय यथायछे अने तेथी वाना भविष्यना कामने, जवे धको पद्ीचे 2, आ ग्रंथने अंगे पण एकाद वे बाववमां कांइक असमनस भवे समजफेर ययेठो अमारे काने आव्यों छे. आखो ग्रंथ मध्य- स्थमावे, केवल पक्षपात रहित, म्रतभेदने कोरे मूक्री, तन्व योधन अवरुदी तेना प्रचार अर्थे लखायलो छे; आ खाने




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