हिंदी विश्वकोष [भाग 9] | Vishwakosh [Part 9]

Vishwakosh [Part 9] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टरस्दय ( लियो ) गया । उस ससय कज्ञानके समान सौजकी जगइ रूसिधा भरर न धी) परन्तु सर्वं दा भोज खाते नौर 'घल'-नाच देखते देते इनको उससे नफरत हो गई! टलस्टय इस समय भीतर दी मीतर श्रपने लिये भ्रादशं नायिकाकीो खोज कर रहे थे। ष्मो श्रव्र पर खन्द फरमसोसो उपन्धास.लेखक ड.मा श्रौर य.जिनसकषे उपन्धा स्च पट्‌ कर वडा श्रानन्द्‌ होता धा । परन्तु इतने श्रानन्द्म भो उनके मनमें शान्ति न थो- उन्हें जोवनको गभौरतम समस्या- ऑकी चिन्ता करनेका अभ्यास वाध्यावस्थासे हो पड़ गया था। इसी समयको स्मुति पर टलस्टयन 50510०0 भर 1०000 नामक दो जोवन-स्यतियां लिडी थीं । टलस्टयके लीवन पर फ़रासो*विज्ञवके अन्यतस खरिकर्ता रूसोका प्रभाव पड़ चुका धा-रूसोकों थे दैवताजौ तरद भक्ति करते थे । टलस्टयकों इस वातकी इमेशा चिन्ता रतो घो, कि किख तरह साधारणकी दृष्टि श्राकर्षित को जाय | दतो उदेश्यसं वे प्राच्यभाषा शिका विद्याक्लयमें प्रविष्ट इए । किन्तु पल वार वं पास' न इए; दूमरो वार श्रो घौर तुर्षी भाषति पारदर्शिता साध उत्तोणं इए ! परन्तु इस ्रधायनसे उन्हे ठति न . इई रोर इमो लिए १८४४ ई०्मे कानृनो विद्यालयमे ३ भरतः हो गये । वहां भो विशेष लाभ न इतरा । छात्रों को शिक्षाके लिए वहाँ कोई सुव्यवस्था न घो--जम नदेभोय अध्यापकगग छात्रों कौ शिक्षा पर विशेष ध्यान न रखते थे । विश्वविद्यालयकी उपाधि पानेके लिए, टलस्टय इल्छिस, कानन चोर धम -8 वन्धो पुस्त; पढ़ने लगे। घमं ॐ विषम इनका मत परिवति त हो गया। वाच्यकानतमे व शानुगतिक घम -विखासमें जो बालक बलौयानू था, बची भ्रब पटद-लिख कर एक तरइका नास्तिक हो गया ! टलष्टयं इतिश्नासको व्यव -न्नान समभते धे । वी कहा कसर थे, “हजार वर्ष पहल क्या श्रा घा, उपकर जाननेखे कया लाभ १”. इसलिए टलस्टय इतिहासकी वक्तता सुनने नडों जातै.ये-काले जम श्रनुपखित रहते थे श्रोर इसके लिए यक बार वे काल्तेजमे वन्दो सो किये गये थे। भाखिरकार किसो तरह ये पचाने इन्तो णं हो गये । ₹८४७ ई०में नाना कारणों से इनका श्रत ं 1 च थ = १९ सनाख्व विगह गया ; इन्होने किमो ग्राम ( देदात ) में जञानिके लिए अनुमति सांगो ! इत प्रकार टलस्यकी बिद्या-शिचा समाप हुई वें कुछ उपाधि न पा सके । काले जकी शिक्षा उनके सनको श्राकर्षित न कर सको त्रो, इसीलिए उन्हं ` वदां व्यथं काम होना पड़ा या) टलस्टयकों शहरों से नफरत हो गई शोर वं श्रपने गाँवसें लौट ब्राये । उन्हें आशा थो कि “गाँव के किसानों - के साथ सिंल कर, चनमें शिक्षा और नव-स स्कारका प्रसार कर 1 टल्धथ कषजानके किसानो कौ दुदंना- का विवरण वदत सुन चुके ये--इरो लिए उनके दुःख हूर करनेके लिए उन्ों ने कमर कस ली । १८४७ दनम दुर्भि इश्रा । प्रत्येक जिलेके आदमियो न अनाज पान कौ उसमे दसे जारके पास प्राय ना-पत्न भेजे ; ठल- स्टयने टेखा, कि यह से कड़ो' इजारों मनुष्यों के जोवन- मरणका प्र ह, व कार्य करने का अवसर आया है! छ मास तक उन्दों न सहक्रारके लिए - नाना प्रकार प्रयत्न किये 1 परन्तु श्रन्तमें विशेष कु नतोजा न निक्ल- ने से सेरठ-पिटम बगं लौट श्राथे और 1,4041074*5 प7०ण7४६^ नामक उपन्यास लिख कर उन्होंने उस युगकौ असिन्ञता प्रदर्शित की । इसके वाद फिर ्रामोद- प्रमोदते फस करये कज दार हो गये । श्राखिर १८५९ ईू०्सें वे कनासम पहुँचे, जहाँ उनके भाई निकोलस फौजमे काम करते थे । यहाँ पव तके नौचे एक सो पढ़ी साड़ी पर से वर रन सारी ओर सदीस से सिफ <एरइ शिनिडसात्र खच करन लगे। इसके वाट भाई: तथा उचपद स्थ आत्मी८-खजनींके अनुरोधसे टलसूय फोजमें भरतो दो गये ! रून:-बिभाग- कौ परोत उत्तोण हो, वे बढस्तन सौनिकका काम कर्ने नगे । परन्तु उन मनक गति दूसरो शरोर यौ; उन्होने एक अच्छ पुस्तक लिखो शौर उसे रतिया के एक प्रसिद सासिकण्तसें छपानिके लिए सेज दिया । सम्मा दकने उषवो बहत प्रयसा को शरीर ग्रपने पत्में स्थान दिया । इस समय टलस्टय अपने घर जामेके लिए बढ़े . चद्चतष्टो पड़ धै । परन्तु क्रिमियःमं युड़ जड़ जभ उन्हे' तुरकौसे युद करने ॐ लिए क्रित्तिया जाना पड़ा 1 युद के बौचसें लगातार त्व यका दृश्य देव कर




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