सद्गुणी सुशीला | Sadguni Sushila
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सा दर ९५
सोठी--“तुम्दे खबर नहीं है, पर में अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम्दारे
यहाँ क्या दो रहा है १
इस चार सुशीठाने जरा गम्भीर होकर कहा--“तुम्दारी बात
मेरी समकमें स्पष्ट नद्दीं आती । ज़रा खुढासा कद्दी । क्या किसीके
मदं कहीं वाह्र नहीं जाते । इसमें बुराईकी कौन सी बात है ?”
शारदाने कहा--“रंज दोनेकी बात नहीं है । किसी मदं एदं
यादर जाते क्यों नदीं है, पर इसछिये नहीं जाते कि उसका घर
खाकमे मि जाय । सुशीला तू भोली-भाली है। तू अभी तक
वास्तव मे कु नदीं समती 1
इतना कह उसने सुशीलाके कानके पास सुँद ले जाकर जो कुछ
कद्दा, उससे सुशीला एकदम चौक पढ़ी । घबराकर बोछी--“नहदीं
नहीं बदन ' ऐसा नहीं दो सकता । वे मेरे और केवल मेरे दी हैं।
ऐसा कहकर उनपर क्ंक न ठगाओ, मेरे हृदयमें सन्देदका वीज
नबोओ।”
चतुरा शारदा वोठी--“इंइवर करे बेसा दी हो, जैसा हू सम-
सती है। परन्तु सुशीछा ! वात वास्तवमें वैसी नहीं हैं, मुझे जो
समाचार मिले हैं, वें वास्तवमें भयानक हैं और इसीलिये में इस
समय आयी दह कि तुभे सावधान कर दूँ ।
परन्तु फिर भी सरठा सुशीलाकों विश्वास न हुआ । षह बोटी
“नही, यह कभी सम्भव नदी है ।
कहनेको तो वह यद कद गयी, परन्तु इसी समय कल रातकीं घटना
और चित्रवाली वात उसे याद हो आयी । अपने पतिका वह सूखा
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