सद्गुणी सुशीला | Sadguni Sushila

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sadguni Sushila by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सा दर ९५ सोठी--“तुम्दे खबर नहीं है, पर में अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम्दारे यहाँ क्या दो रहा है १ इस चार सुशीठाने जरा गम्भीर होकर कहा--“तुम्दारी बात मेरी समकमें स्पष्ट नद्दीं आती । ज़रा खुढासा कद्दी । क्या किसीके मदं कहीं वाह्र नहीं जाते । इसमें बुराईकी कौन सी बात है ?” शारदाने कहा--“रंज दोनेकी बात नहीं है । किसी मदं एदं यादर जाते क्यों नदीं है, पर इसछिये नहीं जाते कि उसका घर खाकमे मि जाय । सुशीला तू भोली-भाली है। तू अभी तक वास्तव मे कु नदीं समती 1 इतना कह उसने सुशीलाके कानके पास सुँद ले जाकर जो कुछ कद्दा, उससे सुशीला एकदम चौक पढ़ी । घबराकर बोछी--“नहदीं नहीं बदन ' ऐसा नहीं दो सकता । वे मेरे और केवल मेरे दी हैं। ऐसा कहकर उनपर क्ंक न ठगाओ, मेरे हृदयमें सन्देदका वीज नबोओ।” चतुरा शारदा वोठी--“इंइवर करे बेसा दी हो, जैसा हू सम- सती है। परन्तु सुशीछा ! वात वास्तवमें वैसी नहीं हैं, मुझे जो समाचार मिले हैं, वें वास्तवमें भयानक हैं और इसीलिये में इस समय आयी दह कि तुभे सावधान कर दूँ । परन्तु फिर भी सरठा सुशीलाकों विश्वास न हुआ । षह बोटी “नही, यह कभी सम्भव नदी है । कहनेको तो वह यद कद गयी, परन्तु इसी समय कल रातकीं घटना और चित्रवाली वात उसे याद हो आयी । अपने पतिका वह सूखा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now