आचार्य श्री तुलसी | Acharya Shri Tulsi
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषवेको गतिविधि ३
साम्यवाद भी आरे चल किसी अपने अनुजसे संघप मोछ न हे,
यह माना नहीं जा सकता । इसमें भी सत्ता और पूंजीका एक-
छुत्र राज्य है ।
एकके चाद दूसरी सत्ता और एकके वाद दूसरे वाद आये ।
उनसे सुख-शास्तिका द्वार नहीं खुठा तो उनके हृदयमें धड़कन
कसे वनी रही १ यह एक प्रश्न द । इसका उत्तर पानेके लिए
विशेष गहराईमें जानेदी जरुरत नहीं । उनसे एद नदीं वना या
वेता यह् नहीं ; उनसे मतुप्यकों रोटी मिलो, मकान मिछा,
सुरक्षा मिली, जीवन चलानेवाले साधन मिले, पर जो इनसे आगे
है ( सुख-शास्तिका मागे ) वह नदीं मिला ।
मतुष्यके इवर मस्तिप्कने स्वोज की । मनका बन्थन तोड़ा ।
इसने पाया कि जीना ही सार नहीं. जीनेका सार है जीवनका
विकास करना । वस इसी विचारधाराने धम ओर अध्यान्मवाद्
को जन्म दिया । एक चिश्चार्थीने आचाये श्री हुलसीसे एद्ा-
भान्ति कव दोगी ¶ आपने उत्तर दिया- “जिस दिन मनुप्य
मे मवुप्यता आ जायगी 1 मनुष्य अपनी सन्ताको समभ विना
जाने-अमजाने मनुप्यतासे लड़ता आ रहा है। मानवताका
पुजारीवगं उस मनुष्य आकारवाले चेमान प्राणीको सममाता
आ रहा है। छाखों करोड़ों वर्ष वीते, फिर भी वह लड़ाई ज्यों की
यों च है । दोनोंमेंसे न कोई थका, न कोई थमा, यद् आश्रयं
है। इस पर लिखूं--एसा मेरा संकल्प है 1
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