आचार्य श्री तुलसी | Acharya Shri Tulsi

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Acharya Shri Tulsi  by आचार्य तुलसी - Aacharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषवेको गतिविधि ३ साम्यवाद भी आरे चल किसी अपने अनुजसे संघप मोछ न हे, यह माना नहीं जा सकता । इसमें भी सत्ता और पूंजीका एक- छुत्र राज्य है । एकके चाद दूसरी सत्ता और एकके वाद दूसरे वाद आये । उनसे सुख-शास्तिका द्वार नहीं खुठा तो उनके हृदयमें धड़कन कसे वनी रही १ यह एक प्रश्न द । इसका उत्तर पानेके लिए विशेष गहराईमें जानेदी जरुरत नहीं । उनसे एद नदीं वना या वेता यह्‌ नहीं ; उनसे मतुप्यकों रोटी मिलो, मकान मिछा, सुरक्षा मिली, जीवन चलानेवाले साधन मिले, पर जो इनसे आगे है ( सुख-शास्तिका मागे ) वह नदीं मिला । मतुष्यके इवर मस्तिप्कने स्वोज की । मनका बन्थन तोड़ा । इसने पाया कि जीना ही सार नहीं. जीनेका सार है जीवनका विकास करना । वस इसी विचारधाराने धम ओर अध्यान्मवाद्‌ को जन्म दिया । एक चिश्चार्थीने आचाये श्री हुलसीसे एद्ा- भान्ति कव दोगी ¶ आपने उत्तर दिया- “जिस दिन मनुप्य मे मवुप्यता आ जायगी 1 मनुष्य अपनी सन्ताको समभ विना जाने-अमजाने मनुप्यतासे लड़ता आ रहा है। मानवताका पुजारीवगं उस मनुष्य आकारवाले चेमान प्राणीको सममाता आ रहा है। छाखों करोड़ों वर्ष वीते, फिर भी वह लड़ाई ज्यों की यों च है । दोनोंमेंसे न कोई थका, न कोई थमा, यद्‌ आश्रयं है। इस पर लिखूं--एसा मेरा संकल्प है 1




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