चंद्र कान्त | Chandra Kant

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Chandra Kant  by इच्छाराम सुर्यराम देसाई - Ichharam Suryaram Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चन्द्रकान्त दवितीय भाग अन तृतीयप्रवाह-अच्युतपदारोहण प्रचेदिका (0 वेदस्याध्ययनं छतत परिचित शाखं पुराण श्वतं सबं व्यथेमिदं पदं न कमराकान्तस्य चेतकी 1 उत्खातं सश्दाीरूते विरचितस्सेकोऽम्भसा भूयसा सवं निष्फटमाटवाटवय्ये क्लिप न वीजे यदि ॥ -अथ-क्यारी खोदकर चारोतरफते एकसी मेड (वधान) बनाकर वहु- तसा जर भरा जाय, किन्तु उसमे वीज न वोया जाय तो सव व्यथ जाता ह. इसी प्रकार वेदोका अध्ययन क्या हो, शारखोको जानता हो जौर पुरा- णॉको सुना दो, किन्तु यदि कमराकान्त रमीपति परमेखरके चरणकम- छोंका शुणगान न किया दो तो यदद सब वेदाध्ययन भादिका परिश्रम स्वये दी जाता है. अद्भत बडुकदशोन | चार पढ़ो चढ़ा कोई चार घड़ी चढ़ा था बनमें पु पक्षीं अपने अपने काममे यक रग्‌ गये थे. आमकी डालियोंपर ठटकेहुए पके फलका स्वाद्‌ चखनेके छिए सोते जोर कोय मधुर शाब्द करते इ जहा तदा शद्वेट रदे थे. सुन्दर और दूरतक फैढ़े हुए खरोबरफे स्वणे असे निभख _ अतं विचित्र भौर सुगंघवाढ़े कमठके फूल खिक रहे थे. दिविध मांतिकें




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