त्रिदेव निर्णय | Tridev Nirnaya
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= चिदेव-निर्थय # १९१
यदा सें वद म्व, बद्धौ पस्य, वदो वग्य, वद्दौ सत्य ई ।-परन्तु
इस खच्छतां त प्रजाए न पच खक ! केवल चू वायु अ्रग्नि इन
तोन दो देवीं को प्रधान रुप से यज्ञादि सें पूजने डमी 1 परन्तु एस
समय तक इन तीनों देवों कौ कोई सूर्ति नहीं बनो थी ! पश्चात् ङु
शौर विद्वान् उत्पन्न ए । यद खमय -वुददेव खे वत पदै का था
देश्य मेँ खर्वच प्राय: जैन सम्प्रदाय प्रचलित डो गया था। भर ये
सोग ईश्वर के अस्तित्व को स्लोकार नदीं करते थे घर्थात् नास्तिक
थे । नास्तिक होने पर सी थे लोग पने गुर तीयं वौ सूतिं
कर बड़ षमारोद्ध के संध मग्दिरों में स्थापित कर एजते धे ! इन
जैन सस्पदायियों ने हो प्रथम इस देश सेंसूर्तिपूजा की रोति चलाई 1
जो लोग इस सम्प्रदाय से घृग्गा रखते थे, विचार करने लगे कि अब
क्या करना चाहिये थे लैनो सूर्ति वना सन्दिरों में स्थापित करु,अपने
घडे घिया श्रौर शद्धादिकों कौ ध्वनि से मारे भोले मसते भाइयों
को अपनो श्रोर खींच रे डं । इमे भो रेतो मूर्तियां वनाक्षर स्था-
पित करनी चाहिये । यद्द विदार स्थिर छोने पर उन में जो बुद्िसान्
थे, उन्हीं ने सीन देवता करिपन दिये । सके स्थान मैं विष्णु देव:
वायु कषे स्थान सै न्र्मा,भौर विद्य,तू ( विज्ञुलो ) के स्थान में मद्चादेव:
जिसको रुद्र शिव भोलानाथ आदि नाम,से पुकारते हं । विद्युत् एक
प्रकार का भब्नि हो है)। दीवल विद्य तू हो नदीं किन्तु अग्नि शक्ति
जितमो ड उख सवे स्थान मेंस देव बनाये गये । अब यहा क्रम
शः निरूपण करते ह :जिसते रप लोगों कौ विशदतया बोध दो
| ' विष्णुनाम ।
पूर्वकाल में स्थ का दौ नाम दिष्यु, धा 1 इस भं पथस दय दिष्ण
पघुसाण मा हो प्रमाण देते हं1 यथाः--
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