मधुमेह | Madhumeh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ मघुमेह-रोग का हेंतु-विज्ञान १७ माहार, व्यवसाय, भादत आदि के कारण कुटुम्बियो मे मधुमेह की वीमारी प्रवेन कर सकती है । उदाहरण-सख्या ४ का रोगी भानुवं्िक मधुमेही ह । (२) आहार मधुमेह-रोग का आहार के साथ अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है । आज- कल हमारे आहार मे व्वेतसारीय खाद्य-पदार्थो की प्रचुरता रहती है । चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, आलू, शकरन्द, सूरन ( जमीकंद ) आदिः का उपयोग अधिक परिमाण मे किया जाता है । बचपन से पिपरमिट कीं गोलियाँ, टॉफी, चाकलेट, मिश्री आदि खाने की भादत पड़ जाती है । परिवारों में गक्कर, डाल्डा, तेल भादि से वने मिष्ठान्नो का काफी उपयोग होता है। मिष्ठान्न एवं स्नेहयुक्त पदार्थों के अतिसेवन से मधुमेह पेदा होता है । जिस प्रदेश मे चीनी का उत्पादन एवं सेवन बढा है, वहाँ मधुमेह के रोगी अधिक पाये जाते है, जैसे अमेरिका । गुड़ मे यह दोष नही है, क्योकि उसमे क्षारीय लवण रहते हैं । विटामिनों की न्यूनता भी मधुमेह को पैदा करने मे सहायक होती है । इनमे विटामिन ए, वी मौर सी मुख्य है । वैसे मासाहारी एवं श्ाका- हारी दोनो को मधुमेह समान रूप से लागू होता है । लेकिन मासाहारियों मे इसका उपद्रव अधिक तीव्र तथा शाकाहारियो मे सौम्य होता है।, (३) स्थूलता माहार एवं स्थूकता का अति निकट का सम्बन्ध है । स्थूल व्यक्तियों मे यह रोग विशेष रूप से पाया जाता है । केवल स्नेह ( चरबी ) के अति सेवन से शरीर स्थूल होता है, ऐसी बात नही है । अत्यधिक मात्रा मे श्वेतसार एवं मिष्टानन के सेवन से भी दैनिक आवद्यकता से अधिक दाकरा चरबी में रूपान्तरित होकर शरीर के विभिन्‍न अगो में संग्रहीत होती है । यह मेद-वुद्धि का वास्तविक कारण है ।




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