मधुमेह | Madhumeh
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ मघुमेह-रोग का हेंतु-विज्ञान १७
माहार, व्यवसाय, भादत आदि के कारण कुटुम्बियो मे मधुमेह की
वीमारी प्रवेन कर सकती है । उदाहरण-सख्या ४ का रोगी भानुवं्िक
मधुमेही ह ।
(२) आहार
मधुमेह-रोग का आहार के साथ अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है । आज-
कल हमारे आहार मे व्वेतसारीय खाद्य-पदार्थो की प्रचुरता रहती है ।
चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, आलू, शकरन्द, सूरन ( जमीकंद ) आदिः
का उपयोग अधिक परिमाण मे किया जाता है । बचपन से पिपरमिट कीं
गोलियाँ, टॉफी, चाकलेट, मिश्री आदि खाने की भादत पड़ जाती है ।
परिवारों में गक्कर, डाल्डा, तेल भादि से वने मिष्ठान्नो का काफी
उपयोग होता है। मिष्ठान्न एवं स्नेहयुक्त पदार्थों के अतिसेवन से मधुमेह
पेदा होता है ।
जिस प्रदेश मे चीनी का उत्पादन एवं सेवन बढा है, वहाँ मधुमेह के
रोगी अधिक पाये जाते है, जैसे अमेरिका । गुड़ मे यह दोष नही है,
क्योकि उसमे क्षारीय लवण रहते हैं ।
विटामिनों की न्यूनता भी मधुमेह को पैदा करने मे सहायक होती
है । इनमे विटामिन ए, वी मौर सी मुख्य है । वैसे मासाहारी एवं श्ाका-
हारी दोनो को मधुमेह समान रूप से लागू होता है । लेकिन मासाहारियों
मे इसका उपद्रव अधिक तीव्र तथा शाकाहारियो मे सौम्य होता है।,
(३) स्थूलता
माहार एवं स्थूकता का अति निकट का सम्बन्ध है । स्थूल व्यक्तियों
मे यह रोग विशेष रूप से पाया जाता है । केवल स्नेह ( चरबी ) के
अति सेवन से शरीर स्थूल होता है, ऐसी बात नही है । अत्यधिक मात्रा
मे श्वेतसार एवं मिष्टानन के सेवन से भी दैनिक आवद्यकता से अधिक
दाकरा चरबी में रूपान्तरित होकर शरीर के विभिन्न अगो में संग्रहीत
होती है । यह मेद-वुद्धि का वास्तविक कारण है ।
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