जैनतत्वमीमांसा की मीमासा | Jaintatvamimansa Ki Mimansa

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Jaintatvamimansa Ki Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा से एक पुस्तक लिखी है उसकी मीमांसा के रूप में व्याक रणाचार्य प० वशीधर की वीना एक पुस्तक लिख रहे है उस ही का यह प्रथम भाग है। मीमासा की मीमासा के सम्बन्ध मे कुछ भी कहना मात्र अपने मुख से अपनी प्रशसा करना होगा अत एसा न करके इसका उत्तरदायित्व हम पुस्तक के पाठकों पर दछोडते है तथा उनसे साग्रह॒ निवेदन करते है कि वे इसको सनन की द्रष्टि से पढने का कष्ट करे । अब रह जाती है व्याकरणाचा्यजीकी भावना एव उनके प्रयत्नो की बात । इसके सम्बन्ध मे कुछ भी लिखना व्याकरणाचायं जी की भागना एव उनके प्रयत्नो को हलका करना होगा व्याकरणाचार्येजी इन दिनो बीमार रहे है. किन्तु ऐसी स्थिति मे उनको बीमारी के कष्ट से भी अधिक कष्ट इस बात का रहा है कि परम्परा को बिगाड़ा जा रहा है और पण्डितजन भी किसी भी आनिवचंनीय कारण से ऐसे वर्ग की सारहोन मान्यताओको भी ताकिक रूप देने जा रहे हैं व्याकरणाचायें जी की इस ही वेदना का परिणाम है जो उन्होंने ऐसे वर्ग की मूल मान्यताओ के सम्बन्ध में तर्क॑ एवं शास्त्राघार से आचाये मान्यताओ के समर्थन मे अनेक पुस्तकें लिखी है यह उनमे पहली पुस्तक है उनकी शेष रचनायें भीं निकट भविष्य मे ही सामने आ जायेगी । जहाँ तक दिगम्बर जन सस्कृति सेवक समाज का सम्बन्ध है व्याकरणाचार्यजी उसके एक अभिन्न अग है अत यह हम




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