अहंवादी की आत्मकथा | Ahamvadi Ki Aatmkatha

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Ahamvadi Ki Aatmkatha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-श्रहंवादी की श्रास्मकथा ] [ १३ मेरा हृदय जलल भुनकरर राख टोने लगता, किन्त फिर भी उसका रस्तं “रोकने का साइस सुके न होता । श्रक्र रात-रात भर यह सोचकर -सुक्ते नींद न दाती कि मैं श्पनी घोर फ्ायरतावश एक साधारण अफसर के व्यक्तित्व से भयभीत द्ोकर रास्ते में चलते हुए उसके “सामने से अलग हट जाता हूँ । कमी कुछ देर के लिये नींद श्राती भी तो में सहसा चौंककर जाग पड़ता श्रौर अपने श्राप से यह प्रश्न -करता--'ठुम इतनी अधिक मूखतापूण कायरता का प्रदशन क्यों करते हो १ जव-नव वह्‌ कसर तुम्दारे सामने से होकर गुज़रता है तथ-तव मुम क्यों उसके लिये रास्ता छोड़ देते हो १? कभी उसने भी ठम्हारे लिये रास्ता छोड़ा है ? तुम में उसके कन्वे से कन्धा मिड़ाकर बेधड़क -चलने का साहस क्यों नहीं है ?”” पर मैं चाहे कितना ही श्रपने को श्रपनी इस कायरता के लिये कोसता रहा होऊँ, ऐन मौके पर मेरा सारा पूवकृत निश्चय ठह जता या, और मैं उसके लिये रास्ता न छोड़ने का साहस नहीं बटोर' पाता था] 'एक बार मैंने निश्चय किया कि. जब वह श्रफ़्सर मेरे सामने से होकर गुज़रना चाहेगा, तो मैं श्रपने स्थान से हरदगा नही, और जान बूककर उसका सस्ता रोककर खड़ा हो जाऊँगा । तबःदेखें वहं क्या 'करता है! इस निश्वय ने मेरे मन में भूत की तरदं डेरा जमा लिया | ` कैसेः -छ्रौर कवं वह. विचार का्य॑ल्प में परिणत हो सकेगा, इस चिन्ता से मैं प्रतिपल चेचेन रहने लगा । मैंने नेव्सकी प्रासपेक्ट में प्रतिदिन 'निय- मित रूप से. जाना श्रारम्भ 'कर श्याः। मैं: पहले दस संम्बन्ध ' में पूर्ण प्रयोग कर लेना चाहता था-कि 'ऐन मौक़' पर सुकते ठीक किस ` प्रकारं




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