तुलसी के चार दल भाग २ | Tulsi Ke Char Dal Part-ii

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Tulsi Ke Char Dal Part-ii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रासलला नहद्धू १३ भरत सनन दूनौ माई) प्रसुसेवक जसति मीति बढ़ाई ॥ स्यास गौर सुंदर दाठ जोरी । निरखहि छुषि जननी तून सारी ॥ साजु सवधपुर सानंद नह रास कदे, चलहु नयन भरि देखिय उभा धास का हो ॥ सति बड़साग नउनियाँ छुऐ नख हाथ हो। नेनन्ह करति गुसान ते श्रीरघुनाय से हो ॥९ ३॥! शब्दार्थ--साभाधाम क--शोभाधाम के । गुमान--गर्व, अभिमान । अर्थ--आज अये।ध्यापुरी में आनंद है क्योंकि रामचंद्रजी का नइछू है। चलो सुंदरता के घर रामचंद्रजी के अस्छे प्रकार देखे और नेत्रों वप्त करः नाउन आज बड़ी भाग्यक्ञालिनी है। वह अपने हाथ से ( भगवान ) रामचद्र के नख छू रही है और नेत्रों द्वारा महाराज दशरथ से अपना गर्व प्रकट करती है । टिप्पणी--( १ ) गास्वामीजी ने प्रथम द्य चरणो मे सारे जन- मंडल का प्रतिनिधित्व किया है । (९) दूसरी श्रार तीसरी पंक्तियों में उन्होंने श्रीरासचंद्र को भगवन्सूति' साना है श्रैर उनके दर्शन को “नयन भरि देखिय?ः तथा उनकं स्पश से “तरति बड़माग नउनियो फिरश्रीर भी बड़ा भाग्य “छठे नख हाथ सों हो” कहा रहै । (३) नाउन के नेत्र स्वभावत: चंचल होते है, जैसा कि वे स्वयं कह चुके है-- ¦ “भसन विसार नउनिर्या यै चमकावद्‌ हो ।”” कितु इस स्थान पर उख काय को उन्होने झभिप्रायपूर्ण बना दिया है! अवश्य ही यह कस्पना का चमत्कार है ।




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