नया हिन्दी साहित्य : एक दृष्टि | Naya Hindi Sahitya : Ek Drishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हक २.२२; हिन्दी साहित्य की प्रगति वर्गों की पहेली को आपने समझा और इन समस्याओं का अपनी कहानियों में विधद्‌ चित्रण किया । स्व० प्रेमचन्द अपने जीवन के खगभग अन्त तक गांधीचादी रहै ओर अपने साहित्य में इस आशा को स्थान देते रहे कि हृदय-परिवत्तन से समाज सुधर जायगा । यह्‌ आशा का अछुर पदले “प्रेमाश्रम' में छगा था; किन्तु 'गो-दान' में नष्ट हो चुका है। “कफ़न' आदि कहानी सी हमें एक दूसरे ही दृष्टिकोण का आभास देती हैं। 'समर-यात्रा' का सन्देश यदह महारथी हमे निरन्तर सुनाता रहा । आपकी रचना को हम किसानों का भमर गीत कद सकते हैं । राष्ट्रीय जाप्रति के साथ अनेक गायक भी पैदा हुए, इनमें सबसे अपिर प्रभावशाली नवीन हैं । आप कहते हैं : “कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ--निसते उथल-पुषल मच लाये । एक दिलोर इधर से भये एरु दिलोर उधर से भये श्राणो के लले प्रइ नयं अद्िन्राहि सख नम में छाये । नाश और स्यान का धघुआँघार जग मं छा लये। वरते भाग, जल्द जल जायें, . भत्मघात, भूघर दो जायें । पाप-पुण्य, सदसदूभावों की, धूल उड उठे दायें बयें। नभ का वक्षस्थल पट जाये; तारे दक-टरू दो. जायें । कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथरु-पुथठ मच जाये ॥” आपने “गान्धी गुरुदेव”, मानकः, 'पराजय-गान” आदि अनेक प्क्तिपूण कविताएँ ल्खी दै हमें हषं हे कि अव वर्पो वाद्‌ ङ्गमः नामके संप्र सै आपकी कचिता सवेसाधारण को श्राप्य हो गई है । 7न्धीजी को आपने “ओ कुरस्य-धारा-पय-गामी ! केकर खम्वोयित किया है ! 'पराजय-गानः पदे सत्याव्रह-आन्दोखन्‌ की पराजय के वाद्‌ छिखा गया था: भाज खड्ग रो धार कुण्टिता, है श्रा तूणीर हुआ |! विजय-पताका शुको हरं दै, ल्व्य-्ट यद तौर हुभा--




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