नया हिन्दी साहित्य : एक दृष्टि | Naya Hindi Sahitya : Ek Drishti
श्रेणी : निबंध / Essay, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हक
२.२२; हिन्दी साहित्य की प्रगति
वर्गों की पहेली को आपने समझा और इन समस्याओं का अपनी
कहानियों में विधद् चित्रण किया । स्व० प्रेमचन्द अपने जीवन के
खगभग अन्त तक गांधीचादी रहै ओर अपने साहित्य में इस आशा
को स्थान देते रहे कि हृदय-परिवत्तन से समाज सुधर जायगा । यह्
आशा का अछुर पदले “प्रेमाश्रम' में छगा था; किन्तु 'गो-दान' में नष्ट
हो चुका है। “कफ़न' आदि कहानी सी हमें एक दूसरे ही दृष्टिकोण
का आभास देती हैं। 'समर-यात्रा' का सन्देश यदह महारथी हमे
निरन्तर सुनाता रहा । आपकी रचना को हम किसानों का भमर गीत
कद सकते हैं ।
राष्ट्रीय जाप्रति के साथ अनेक गायक भी पैदा हुए, इनमें सबसे
अपिर प्रभावशाली नवीन हैं । आप कहते हैं :
“कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ--निसते उथल-पुषल मच लाये ।
एक दिलोर इधर से भये एरु दिलोर उधर से भये
श्राणो के लले प्रइ नयं अद्िन्राहि सख नम में छाये ।
नाश और स्यान का धघुआँघार जग मं छा लये।
वरते भाग, जल्द जल जायें, . भत्मघात, भूघर दो जायें ।
पाप-पुण्य, सदसदूभावों की, धूल उड उठे दायें बयें।
नभ का वक्षस्थल पट जाये; तारे दक-टरू दो. जायें ।
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथरु-पुथठ मच जाये ॥”
आपने “गान्धी गुरुदेव”, मानकः, 'पराजय-गान” आदि अनेक
प्क्तिपूण कविताएँ ल्खी दै हमें हषं हे कि अव वर्पो वाद् ङ्गमः
नामके संप्र सै आपकी कचिता सवेसाधारण को श्राप्य हो गई है ।
7न्धीजी को आपने “ओ कुरस्य-धारा-पय-गामी ! केकर खम्वोयित
किया है ! 'पराजय-गानः पदे सत्याव्रह-आन्दोखन् की पराजय के
वाद् छिखा गया था:
भाज खड्ग रो धार कुण्टिता, है श्रा तूणीर हुआ |!
विजय-पताका शुको हरं दै, ल्व्य-्ट यद तौर हुभा--
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