जायसी की काव्य साधना | Jaaysi Ki Kavy Sadhna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( ११)
समुन्नत लक्ष्य की श्रोर ले जाने चाले पंथ को श्रालोकित किया है । इस वर्ग के
मनुष्यों को मोहम्मद साहुव का जीवन तथा कुरान की पविद्र पुस्तक कुछ दूसरी
दिक्षायें देती थी । यह वर्ग उस समय के पतनोन्मुख समाज से श्रलग एकान्त में
घ्यप्टि का तापसी जीवन व्यतीत करता था । सुफी-धर्म की प्रारम्भिक उत्पत्ति
इसी मे श्रस्तनिहित हैं । मोहम्मद वारा प्रचारित इस्लाम धमं के घवल प्रकाश
में कई रगकी किरणे मिली हुई थौ ! राजनीति के शीले ने उनको श्रलग-ग्रलग
विखरा दिया । जिया, खारिज, मुजिया श्रौर कादरो सम्प्रदायो ने सवसे पहिले
जन्म लिया ।” --डा० कमलकुलश्रेप्ठ । वाद मे ये सम्प्रदाय उपसम्प्रदायो मैं
विभकत हो गए ।
ईसा की सातवी शताब्दी में सूफी साधक परम्परागत धर्म कौ षपाबन्दी
और इसके नियम-कानूनों को मानकर ही चलते थे! उन समय तक सूफीमत
नकारात्मक विज्ञेप था । उसके सिद्धान्तो का उस समय तक समुचित विकास
नही हो पाया था । इस समय तक वे न साधना के मानसिक पक्ष की ही ग्रौर
अग्रसर हो पाये थे श्रौर न पूरा-पूरा फकी रो जैसा जीवन बिताने तक ही सीमित
है । पैगम्बर के कु विरेप वचनो श्रौर उपदेगों को वे श्रत्यघिक महत्व देते
थे 1 वीरे-वीरे तत्व-चिन्तन की ग्रोर भी अर्रनर होने लगे । किन्तु यह तत्व-
चिन्तन की प्रवृत्ति भीतर टी भीतरकामकररही थी) प्रकालमें लगमगसौ
वर्पों के वाद श्राई ।
ईना की श्राठवी शताब्दी के अन्तिम वर्षो में सूफी साधना का मानसिक
पतन प्रवल होता गया श्र सुफी साधकों ने परम सस्ता की सर्वव्यापकता तथा
प्रकृति की प्रत्येक वस्तु मे परम सत्ता के दर्शन करने के सिद्धान्त को अधिक से
अधिक श्रमनाया । वगशदाद उम काल मे एकर जवरदस्त सास्कृतिक केन्द्र था ।
झबव्वासी खनीफो के ठ्रवार मँ विद्वानो जओौर अन्य नुवी जनो को पूरा सम्नान
था । वाहर के दिट्टान वहाँ ्राते थे ओौर उसराद्यो, वौदो तथा मुस्तलमानो के
वीच गास्वार्यं हुमा करता था इसका प्रभाव सूफी साधकोा पर पडा । ईसा की
ग्राठवी घनाव्दी के पिछने दस पंद्रह वर्पो ने तेकर नवी झाताव्दी के लगभग
साठ वर्पों तक, ७५ वर्षो का काल सुफीमत के विकास की एक नई दिशा की
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