गांधी साहित्य गीता माता भाग 1 | Gandhi Sahitya Geeta Mata Bhag 1

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Gandhi Sahitya Geeta Mata Bhag 1  by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोता-बोघ सेक्षेत्रः भी। यदि इसे हम इंश्वरका निवास्‌-ध्थानः समभें और बनावें तो यह धर्मंक्षेत्र है। इस क्षेत्रमें- कुछ-न-कुछ लड़ाई तो नित्य चलती ही रहती हैं और ऐसी अधिकांश लड़ाइयां 'मेरा'-तिरा' को लेकर होती - हं । अपने-परायेके भेदभावसे पैदा होती हं । इसी- लिए आगे चलकर भ्रगवान अर्जुनसे कहेंगे कि “राग', 'ट्ष' सारे अधमंकी जड़ है । जिसे “अपना” माना उसमें राग पैदा हुआ, जिसे पराया जाना, उसमें दवेष-- वैरभाव आ गया । इसलिए 'मेरे'-'तेरे' का भेद भूलना चाहिए, या यों कहिये कि राग-द्वेषको तजना चाहिए । गीता ओर सभी धर्म-ग्रंथ पुकार-पुकारकर यही कहते हूं। पर कहना एक बात है और उसके अनुसार करना दूसरी बात । हमें गीता इसके अनुसार करनेकी थी शिक्षा देती है । कैसे, सो आगे समभनेकी कोरिदा को जायगी । दूसरा अध्याय सोमप्रभात १७-११-३० अर्जुनको जब कृ चेत हुआ तो भगवाननें उसे




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