गांधी साहित्य गीता माता भाग 1 | Gandhi Sahitya Geeta Mata Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
590
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गोता-बोघ
सेक्षेत्रः भी। यदि इसे हम इंश्वरका निवास्-ध्थानः
समभें और बनावें तो यह धर्मंक्षेत्र है। इस क्षेत्रमें-
कुछ-न-कुछ लड़ाई तो नित्य चलती ही रहती हैं और
ऐसी अधिकांश लड़ाइयां 'मेरा'-तिरा' को लेकर होती
- हं । अपने-परायेके भेदभावसे पैदा होती हं । इसी-
लिए आगे चलकर भ्रगवान अर्जुनसे कहेंगे कि “राग',
'ट्ष' सारे अधमंकी जड़ है । जिसे “अपना” माना
उसमें राग पैदा हुआ, जिसे पराया जाना, उसमें दवेष--
वैरभाव आ गया । इसलिए 'मेरे'-'तेरे' का भेद भूलना
चाहिए, या यों कहिये कि राग-द्वेषको तजना चाहिए ।
गीता ओर सभी धर्म-ग्रंथ पुकार-पुकारकर यही कहते
हूं। पर कहना एक बात है और उसके अनुसार
करना दूसरी बात । हमें गीता इसके अनुसार करनेकी
थी शिक्षा देती है । कैसे, सो आगे समभनेकी कोरिदा
को जायगी ।
दूसरा अध्याय
सोमप्रभात
१७-११-३०
अर्जुनको जब कृ चेत हुआ तो भगवाननें उसे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...