मराठे और अंग्रेज | Marathi Aur Angrej

Marathi Aur Angrej by नरसिंह चिंतामण - Narasingh Chintaman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श). युद्ध मे सवारो कौ अपेक्षा तेपों का.सस्वन्ध पैदल सेना से अधिक रहता है 1 शत्र का आक्रमण होने पर तापों की रक्‍्ा पैदल, सेना ही कर खकती है । अतः, यदिं आक्रमण करने वाछी ' पैदल सेना कवायदी हे. ते चचाव क़रनेवाली :.सेना का, भी, क़वायदी होना आवश्यक है 1 . हैद्रअली की सेना कचायदी थी, फिर भी, माधवराव पेशवा,के अन्त तकः अपनी सेना को कवायद रखने को आवश्यकता -पूना-द्रवार 'के मालूम नहीं हुई; क्यों कि एक तो हैद्रअलो की सेना नाम मात्र को ही कवायदी थो,दूसरे इस प्रकार बहुत सेना रखने का खुभीता पेशवा को भी नहीं था । उनका सम्पूण राउ प्रायःसरज्ञाम में वटा हुआ -था और यह सर्रजास सिफ घुड़सवारों का था । जो कुछ राज्य का हिस्सा सरकार -के अघीन था उसकी आय से ख़च निकालकर अडरेज़ों से लड़ने के लिए सेना तैयार रखना आवश्यक था । यदि सर- जाम कम करने और सवार सेना घटाकर पैदल सेना बढ़ाने ' का- विचार किया जाता ता महाराजा के दिये हुए सरझ्ञाम- मे चिना कारण हस्तक्षेप -कस्ने का अधिकार पेशवा का भी .नहीं था । फिर नाना फडनवीस को ता . ऐसा अधिकार होता ही कहाँ से ? बसई, :: कल्याण प्रभति काकन प्रान्त की रक्षा अंगरेज़ों से करने के छिए नाना ने जो दे चार चर्षौ तक दस पंद्रह हज्ञार खमयिक सेना र्वो थी वह सव अशिक्षितं थी । उस पैदल सेना में सिंधी, रुददेढे, अरवी; ` पुरविया आदि सव परदेशी छाग थे ) अश्वायेदी सैनिकः पदर सेनाकेा सदा से तुच्छ सम- ` भते आते हे -अङ्गरेजों से साख्वाई कौ सन्धि तक .मराठों




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