आधुनिक विज्ञान और आधुनिक मानव | Aadhunik Vigyan Aur Aadhunik Manav

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Aadhunik Vigyan Aur Aadhunik Manav by जेम्स बी॰ कॉनेन्ट - Jems B. Konent

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिछले दस चर्ष में विज्ञान श्र प्राविधिक विज्ञान € के शांतिपुणं अन्तर्य वेज्ञानिक ठचि मे सीमित रह सकता था ! श्रल- वत्ता अगर इस नमं गैस” को मालूम करते समय कुछ नये रासायनिक ` त्व मालूम किये होते तब युद्धमे विज्ञान के इस प्रयोग से वड़ी भारी तव्दीली श्राती श्रौर विज्ञान के प्रति समाज का रवैया वदल जाता । रासायनिक युद्ध, उदजन वम, पानी के नीचे युद्ध, जेट, वायुयान, नई सुरंगें आदि में भौतिक विज्ञान और रसायन का वही ज्ञान प्रौर वही सिद्धान्त प्रयोग हुए थे, जिनसे जनता पहले ही भली भात परिचित थी । सैनिक उन्नति के सिलसिले में जो नया .वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त हु्रा । विज्ञान कौ उन्नति के लिए उसका कोर क्रान्तिकारी महत्व नहीं -था । लेकिन परमाणु वम की उत्पत्ति म यह्‌ ज्ञान कितना पुं हो गया। पहले इतने वड़े परिवत्तंन की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। सन्‌ १६४० में भौतिक वैज्ञानिकों के पास प्रयोगों के कुछ परिणाम थे, जिनके झ्राघार पर वे परमाणु भौतिक विज्ञान और रसायन के बारे में : सैद्धान्तिक विचार रखते थे इन परिणामों के ्राधार पर उन्होने परमाणु वम के फटने की भविष्यवाणियां की थीं मगर उनकी ग्रधिकांड भविष्यवाशियों को किसी बड़ी प्रयोगशाला में प्रयोग द्वारा सत्य सिद्ध नहीं किया जा सकता था ! विज्ञान ने जो यह नया ज्ञान प्राप्त किया था इसका विकास इस बात पर निर्भर था कि टैक्स देने वालों का बहुत सा रुपया प्रयोगो पर खचं किया जाय श्रौर सन्‌ १९४० मे यह्‌ खचं सिफं इसीलिए सम्भव हो सकता था कि भयंकर विक्व-युद्ध के लिए एक भयंकर शस्व दरकार है । इसीलिए युद्ध की श्रावश्यकता के कारण विज्ञान का बहुत सा काम होने लगा । शुरू मे इस काम को वैज्ञा- निकों के श्रभिदाप के रूप में गुप्त रखा गया । जव युद्ध समाप्त हुआ्रा, तो जितना गुप्त रखना सम्भव जान पड़ा उसे स्मिथ-रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया ओ्रौर वाकी पर सेंसरदिप का पहरा वैठा दिया गया । ऐसी स्थिति की कठिनाइयाँ यहाँ बताने की जरूरत नहीं, क्या मह्वपुणं है रौर क्या नहीं है इसका निणंय करने मे जो संघर्ष हुमा उसे बताने की भी जरूरत नहीं श्रौर यह वताने की भी जरूरत नहीं कि वैज्ञानिक श्रौर सरकारी श्रफसर मे किन-किन वातों पर




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