दिवाकर दिव्य ज्योति भाग 6 | Divakar Divya Jyoti Bhag 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरुष प्रभाकर ] [ ७
न वनने वाले तोर्थंद्धुरो को रोकने वाला ही है ' यह सब निसमें का
विपय है । निसर्ग अर्थात् प्रकृति के नियमो मे परिचत्तंन नही
होता । जिस मौसिम मे जितने घन्टे का दिन जितने घन्टे की रात्रि
प्राजकल होती है, उतनी ही पहले भी होती थी श्रौर भविष्य में
भी होगी । कोई कहे कि एक हो मौसिम में किसी वर्ष बडी झ्ौर
किसी वषं छोटी रात्रि या दिन न होने का क्या कारण है ? तो
सिवाय इसके श्र क्या उत्तर दिया जा सकता है कि निसर्गं का
ऐसा नियम है ! यही बात तीथड्ूरो के विषय मे समकनी चाहिए !
तीर्थंदुरों की संख्या का परिज्ञान केवलज्ञानियो को ही
पुरी तरह हो सकता है । उन्होंने श्रपने श्रपने श्रनन्त ज्ञान में
जेसा देखा वैसा प्ररूपण किया ! केवलज्ञानियो के कथन को प्रमाण
मान कर जो तीर्थड्यूरो का होना स्वीकार करता है, उसे उनके ही
कथन को प्रमाणभूत मान कर उनकी सख्या पर भी श्रद्धा रखनी
चाहिए । बहुत से विषय तकंगम्य होते हैं श्रीर बहुत सी बाते
श्रद्धागम्य होती ह+ तकंगम्य बातो का निर्णय तकं से ही करना
चाहिए 1 उनमे श्रद्धा को घसेड़ना उचित नहीं है। इसी “प्रकार
श्रद्धागम्य विपयो मे तके को घुसेडना अनुचित है । वुद्धिमान्
पुरुष इसी प्रकार विवेक से काम लेते है,
प्रत्येक उस्सपपिणी श्रौर श्रवसपिखी कालके छह-खह श्रारे
' होते है। श्राज कल भ्रवसपिी काल का पाँचवाँ प्रासा चल
रहा है । इसका प्रथम झारा सुखमा सुखमा था
सुखमासुखमा .श्रारे मे सुख ही सुख होता है । उस समय
उत्पन्न होने वाले मनुष्य पूणं सुखं मे श्रपना जीवन व्यतीत करते
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