प्रेम पुजारी राजा महेन्द्रप्रताप सिंह | Prem - Pujari Raja Mahendra Pratap Singh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prem - Pujari Raja Mahendra Pratap Singh  by नन्दकुमारदेव शर्मा - Nandkumar Dev Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नन्दकुमारदेव शर्मा - Nandkumar Dev Sharma

Add Infomation AboutNandkumar Dev Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
राजा महेन्द्रप्रतापसिंद _ § ~ ~~~ ~~~ ~----~ -~ करनेमें बड़ो कठिनाई प्राप्त हुई । संवत्‌ १८७४ विक्रमीमे अंगरेजी सेनाने हाथरसषर धावा किया । कई दिनतक हाथरसके जा्योके वीरता प्रकरः करनेपर भी विजय लक्ष्मी ठाकुर दयाराम: से प्रसन्न न हुई । उसने अंगरेज्ोंको चरमाल पहना दी. कहा जाता है कि ठाकुर द्याराम अंगरेजोंसे सन्धि करनेको तैयार थे पर उनकी एक रख्वेठ अद्दीर ज्ञातिकी स्त्री थी । उसके पुत्र, नेक- ` रामसिंदने उनको सन्धि करनेसे सोक दिया । यह भी कटा जाता है कि नैकरामसिंह अपने पिता ठार दयारामका वध तक करने- को तैयार दो गया था । उसने ठाकर दयारामकी हत्याफी उस सपय चेष्टा की थो जिस समय ठाकुर दयाराम उंगरेज्ञी छावनीसे पालकीमें लौट रहे थे। अपने बेटे नेकरामसिंहकी सामरिक रुखि देश्कर, ठाकुर दयारामने भी अंगरेजोंसे युद्ध ठान दिया सच चात तो यह है कि इस युद्धमें ठाकुर द्यारामका पतन, परमात्माको सी स्वीकार था । अंगरेजोंने बड़े जोर शोर्से हाथ- रसके दुर्गपर आक्रमण किया था । जिस समय ठाकुर दयाराम उंगरेज्ञों के मुकायिलेमें अपने दुर्गकी रक्ामें व्यस्त थे, उस समय यारुदकी पक मेगुजीन फर गई, जिससे खाकर द्यारामष्री सेना- की दहुत हानि हुई। वे रातके समय एक शिकारी टट्ट,पर सवार होकर अपने किलेमेंसे भाग गये । उसी ट्ट्ट,पर दाधरससे भरतपुर, पटुचे । वार वपे पष्ट भर्तपुरके राज्ञा रणजीतसिंद- का अंगरेजोंसे जो युद्ध हुआ था उसका कारण यह था कि राजा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now