मोरबी के व्याख्यान | Morabi Ke Vyakhyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मोरबी के व्याख्यान  - Morabi Ke Vyakhyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दी चाहिनें-सम्पात्ति और विपाति 2? स्यर्य उस उपदेश के चिरद्ध चलता है, उसके उपदेश का जनता पर प्रभाव सहीं पड़ता | | शास्त्र में भगवान्‌ से प्रश्न किया गया है कि चापके धर का उपदेश कोस दे सकता हैं ? भगवान्‌ ने इस श्रश्न का यह उत्तर दिया हे- च्राययुत्ते सया दते दिके अणादवे । ते घम्म युद्धमाक्ति पडिपुरर्मरेलिसं ॥ अर्थात्‌-मेरे धर्म का उपदेश बही दे सकता है जो आत्मा को गुप्त रखता हो । जिसकी श्रात्मा मेरे धर्म में तन्मय हो गईं हो | जो दूसरों को किसी काम को छोड़ने के लिंप कहता है ओर स्चये वही काम करता है, उसका उपदेश केवल ढोंग है । अतव जो स्वये श्रपने उपदे के अनुसार चलता हो, त्यागी दो, ग्रहिंसक हो, सत्यचादी हो, अ्रस्तेयवकी हो, घ्नह्मचारी हो पर माया ममता से रहित हो चही मेरे धर्म का उपदेश देने का पूर्ण अधिकारी है । हिन्दूघर्स के दिपय में गांघीजी ने एक टेख लिखा था । उसमें उन्होंने लिखा था कि हिन्दूधर्मं का उपदेश शंकराय या ध्दि-न्‌ नहीं दे सकते चिन्तु चह दे सकता है-वही हिन्द- घस का सच्चा स्वरूप चतला सकता है जो अहिंसा, सत्य, श्रस्तेय, अह्लचय क! पालन करता हो ओर रिष्पप्रह दो । भगवान्‌ महष्वीस्ने जो ङुख कदा वही सीखक्र तो गांधीजी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now