विनय पीयूष भाग ३ | Vinay Piyoush Khand-3

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Vinay Piyoush Khand-3 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६२३ ( ४ क-ग) श्ीरुरूचरणौ शरणं मम ४६. विति नम उदाहर णो बाले पदोमिं नीचेसे भ्यानका वणेन उठाया गया है, जैसे म्रसुत पदमे । अतएव मेरी समममे मनिमाल' पाठ समीचीन हे | मानसके मदुशतरूपाप्रकरणमे नद्य ॒श्रीसीतारामजीका दशेन जो चरित है उसमें ' ध्यान अपरसे उठाया गया हे; उसमें विप्रचरण नदीं है । उसमे वनमाल, पदिक, हार श्रौर भूषण मणिजाल सव दँ । यथा उर श्रीवत्स रुचिर बनमाला । पदिक हार भूषन मनिजाला ॥ १९1१४७1 ६। श्रन्यच्र प्रायः वनमालके साथ पदिकका वणेन नीं है और इस उद्धरणमे भी पदिक हारफे साथ उसी चर्णमे है । पद्‌ ६१ मे वनमाल दहै, किन्तु पदिक नहीं है; यथा (उरसि चनमाल्ञ सुविसाल नवमंजरी भ्राज श्री वत्सलांदनमुदारं ।* यहाँ 'मणिमाल' से गजमुक्ताकी माला अभिप्रेत है; यथा “उर सरति रुचिर नागमनिमाला ।', “खचिर उर ` ` पदिक गजमनिहार्‌ । गी० जप” पद ६२ में जो कहा था कि जनु उडगनसंडल पर नवग्रह रची अथाई । वह सव भाव “ति- सोभित” कहकर जना दिये हूँ । ६९ ( ७ ) देखिये । £ (ख) भ्विप्र चरन चित कहूँ करषे इति । भाव कि भरणुचरणकों देखकर मन लुभा जाता है, यथा 'बिश्रचरन देखत सन लोभा | ११६६६; क्योंकि उसके देखते ही भगवानकी क्षमा, सौशील्य; कोमल रवभाव छौर सवंस्वामित्व श्रादि गुर्शोका स्मरण हो आता है, जिससे चित्तको बड़ा श्राह्माद होता है और वह सोचने लगता है कि धस एेसे सुस्वामीकी दी सेवामे लग जाना उचित है । उनको छोड़कर अव करट जायगा । विशेष उर विसाल भ्णुचरन चार अति सचत कोमलता । ६२ (६ क,ख) मे देखिए । ४ (ग) श्याम तामरस दाम चरन वपुः इति । रेखी उपमा पूवे सिगार सर तामरस दाम दुति देह । ४४ (३) + और श्याम नवं तामरस दाम दुत्ति वपुष छवि कोरि सदनाकं श्रघटित भरकासं । ६० (९) ! में आ चुकी है। मानसभरमें केवल दो वार दाम” की उपमा ई है, यथा “श्याम तामरस दाम शरीर । ३1११ 1४}, “स्याम सरोज दाम सम सुंदर ! प्रशरु युज करिकर सम दसकंधर ।५।१०।३। श्रीभगवानसहायजीने दामः का चरथं शुच्छा किया है । विशेष ४४८३क) नोट १, २३ देखिए ।




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