स्त्री और पुरुष | Stree Aur Purush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)0 क
राश
'क्रुजर सोनाठा का परिशिद्र ४
१६
कि,
तलाक नहीं देना चाहिए. बल्कि जिस स्वोसे उसका गठबंधन हुआ है;
उसीके साथ उसको रहना चहिए । दूसरे , किसाभी पुरुपका (व्र धात् चट्
पुरुष चहि विवाहित हो या च्विवादित)न्पःको भोगकर वस्तु मानना पाप ह° |
तीसरे.च्वरेव चत पुरे लिए उतम वहौदहै क्रि वदं विवाह न करे, अथात्
पर् व्रह्मचारो र्दे ।
वहुत-ते लोगोकतो ये विचार विचि तथा परस्पर विरोधी मालूम पडेगे |
वे परत्यर विरोधो तो नही दै. पर हमारी वत्तमान जीवन-धाराके विरुद्ध
वस्य हँ । स्वभावतया प्रन उठता है कर करितते सही माने--इन विचारो-
को यः च्नी वत्तमःन जोवन-धाराकों ? जिस समय में ग्रपते वत्तमान
निष्को पर पहुच रहा था. उस समय मेरे मनमे भी यह प्रश्न जोरोसे
उड़ा था । उस समय मैंने सोचा भी न था कि मेरे विचार मुझे उन
निष्कम पर ले जायगे. जिन पर मैं बाज पहुचा हूं । मु श्रये निष्कपोने
चोक्ता दिया । मैं उन पर चिश्चास करना नही चाहता था, प्र उन प्रर
कि ०७, त
पवस्वा करन सम्ब था । वे हमारी वत्तमान जीवन-धाराके चाहें
वें
~> रसद = श्वय नन पटलेन्छे 5 विवार ~~ चाहे = कितवे ~ विरुद
'कतन हा विरुद्ध हो. स्यच मर पहलक [वचाराक चाह् करत ही रद्ध
हो पर उ हे स्वीकार करनेके लावा मेरे पाच आर कोई चारा न था
ह्यु पर उद र करन अलावा म पास र कोड् चसन था]
लाग दलाल करत ह-प ठा ह्मान्य् विचारं ३। हे सकता ह [क
क र
स उदेशं तक अनसर इन्दा वर्ह ~ ^ जिनका
ये इसने उपदेशोके नुसार हा । पर इन्द ता च्या मानेंगे, जनका इनसे
विश्वास हो । ३
9
पर जिंदगी च्राखिर ज्दिगो हे! अपने इंसाके
द्प्राप्य त्रदशक्य संकेत कर दिया । पर श्राप संसारके इस वसे
<्उलत प्रर्नके सदंध्ने मनुष्योको कवल ईसाके द्प्राप्य आ्आदशका
सक्त ज्व उन्हे वीच धारमे नहीं छोड सकते । इससे तो बहुत श्रनि
होनेकी समावना हैं । एक भाइक युवक शायद पहले इस च्रादशंकी
द्रोः झाकरित होजाय । पर वह श्रपनी टेक निभा नहीं सकेगा, उसकी
य्क दीचसे ही टूट जायगी । उस समय वह न तो कोई नियम जानता
ने,
९-नेध्यू ४. ३५, ३२, तथा ५६, ८।
म,
र-मध्यु ८, रख; २६
र३-गस्यू १६. ५<-१२ |
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