स्त्री और पुरुष | Stree Aur Purush

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Stree Aur Purush by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 क राश 'क्रुजर सोनाठा का परिशिद्र ४ १६ कि, तलाक नहीं देना चाहिए. बल्कि जिस स्वोसे उसका गठबंधन हुआ है; उसीके साथ उसको रहना चहिए । दूसरे , किसाभी पुरुपका (व्र धात्‌ चट्‌ पुरुष चहि विवाहित हो या च्विवादित)न्पःको भोगकर वस्तु मानना पाप ह° | तीसरे.च्वरेव चत पुरे लिए उतम वहौदहै क्रि वदं विवाह न करे, अथात्‌ पर्‌ व्रह्मचारो र्दे । वहुत-ते लोगोकतो ये विचार विचि तथा परस्पर विरोधी मालूम पडेगे | वे परत्यर विरोधो तो नही दै. पर हमारी वत्तमान जीवन-धाराके विरुद्ध वस्य हँ । स्वभावतया प्रन उठता है कर करितते सही माने--इन विचारो- को यः च्नी वत्तमःन जोवन-धाराकों ? जिस समय में ग्रपते वत्तमान निष्को पर पहुच रहा था. उस समय मेरे मनमे भी यह प्रश्न जोरोसे उड़ा था । उस समय मैंने सोचा भी न था कि मेरे विचार मुझे उन निष्कम पर ले जायगे. जिन पर मैं बाज पहुचा हूं । मु श्रये निष्कपोने चोक्ता दिया । मैं उन पर चिश्चास करना नही चाहता था, प्र उन प्रर कि ०७, त पवस्वा करन सम्ब था । वे हमारी वत्तमान जीवन-धाराके चाहें वें ~> रसद = श्वय नन पटलेन्छे 5 विवार ~~ चाहे = कितवे ~ विरुद 'कतन हा विरुद्ध हो. स्यच मर पहलक [वचाराक चाह्‌ करत ही रद्ध हो पर उ हे स्वीकार करनेके लावा मेरे पाच आर कोई चारा न था ह्यु पर उद र करन अलावा म पास र कोड्‌ चसन था] लाग दलाल करत ह-प ठा ह्मान्य्‌ विचारं ३। हे सकता ह [क क र स उदेशं तक अनसर इन्दा वर्ह ~ ^ जिनका ये इसने उपदेशोके नुसार हा । पर इन्द ता च्या मानेंगे, जनका इनसे विश्वास हो । ३ 9 पर जिंदगी च्राखिर ज्दिगो हे! अपने इंसाके द्प्राप्य त्रदशक्य संकेत कर दिया । पर श्राप संसारके इस वसे <्उलत प्रर्नके सदंध्ने मनुष्योको कवल ईसाके द्प्राप्य आ्आदशका सक्त ज्व उन्हे वीच धारमे नहीं छोड सकते । इससे तो बहुत श्रनि होनेकी समावना हैं । एक भाइक युवक शायद पहले इस च्रादशंकी द्रोः झाकरित होजाय । पर वह श्रपनी टेक निभा नहीं सकेगा, उसकी य्क दीचसे ही टूट जायगी । उस समय वह न तो कोई नियम जानता ने, ९-नेध्यू ४. ३५, ३२, तथा ५६, ८। म, र-मध्यु ८, रख; २६ र३-गस्यू १६. ५<-१२ |




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