ग्राम सुधार कैसे हो | Gram Sudhar Kaise Ho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे )
घ्यपचिप्कारों का प्रचार हो ! यहीं तक तमं वरन् वक्तानिक
रीति से तयार की ऐसी कुछ प्रयोग शाला भी खोलो जाय |
(३) व्यवष्टारिक वा चाहय-नछान-सस्वन्थी परिपदू-
हस परिपद् की बड़ी भारी ज़रूरत है । क्योंकि श्पने
घ्यव्रसाय सम्चन्घी साधारण व्यवद्दारिक ज्ञान से भी जो पुरुप
परिचित नहीं चद्द क्या खाक इस चलती पुरज़ी दुनिया में
सफलता एप्त कर सकता है ? एक मोटी सी चात उदाइद्दर रु
स्वरूप लेते ई-- किसी मी पदाथ की उपज करने चाले को
दस चात का जानना झावश्यक है कि उस वस्तु कीकट
पर कितनी माग दै? उसके श्चास पास उसकी खपत केसी
है? झव तक उत्पन्न किये हुए पदार्थों में कान से पदाथ में
घ्प्रघिक लाभ रहा आर क्यों ? 'क' एक फिसान है जो ऊपर
की समस्त चातों का कथ्चा चिट्टा रखते हुए श्पना काम
करता दै पल यदह होता है कि वह समय देखकर अपना
ठेग वदल देता दहै श्रार पूरा लाभ उठाता है । दूसरा किसान'
स्रः है जिसको इन वातों का लेश भी ध्यान नहीं आर न
चहद व्यापारियों वा साहकारों की कुरिल्ल चालों को ही
समभता है । फ़सिल में उत्पन्न हुए झनाज को रूलिद्ान
से उठाते डी, पिछले किसान को, श्रावश्यकता के कारण
कडिये चा ज्ञानता के, यही चिचार समता है कि किसी
तरदद भी डो इस झनाज को झभी बेच दिया जाये । उसके
लिगे महये वा सस्तपन का प्रश्न कुछ मूल्य दी नहीं
रखता । श्रावश्यकता से दवा यद्द भोला भगवानः ध्यपने
गाढ़े पसीने की कमाई को चुंगी, आर धर्म खाते फे “सूगरों'
को मद में देखते दी देखते दिन घाले लुटा कर घर 'ा बैठता
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