श्री जवाहर किरणावली भाग २८ | Shri Jawahar Kirnawali Part -28 ( Shri Bhagwati Sutr Vyalhyan Bhag -i )

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Shri Jawahar Kirnawali Part -28 ( Shri Bhagwati Sutr Vyalhyan Bhag -i ) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह टीका किचित्‌ विशेषत ' अर्थात्‌ कुछ विस्तार से लिखी है। इस प्रकार यद्यपि वह प्राचीन टीका आज देखने मे नही आती फिर भी आचार्य के कथन से उसका होना स्पष्ट रूप से सिद्ध है । आचार्य ने यहा मगवतीसूत्र की टीका का ही निर्देश नही किया है अपितु चूर्णी का भी निर्देश किया हे । 'एतट्टीका-चूर्णी' इस पद मे एतत्‌' सर्वनाम भगवती सूत्र के लिए ही आया है, यह निसन्देह है । यह एक समस्त पद है ओर इससे भगवती सूत्र की टीका का तथा चूर्णी का अभिप्राय प्रकट होता हे] अतत जान पड़ता हे कि भगवती सूत्र की यह टीका बनने से पहले टीका ओर चूर्णी दोनो थी | इन मे से चूर्ण तो आज भी उपलब्ध है पर टीका अभी तक उपलब्ध नही है। टीका रचने की प्रतिज्ञा करने के पश्चात्‌ आचार्य ने इस सूत्र की प्रस्तावना लिखी है| प्रस्तावना मे वह सूत्र को कितने बहुमान से देखते हैं यह जानने योग्य है। प्रस्तावना के सक्षिप्त शब्दो मे ही उन्होने सूत्र का सार भर दिया दै । प्रस्तावना वास्तव मे अत्यन्त भावपूर्ण ओर मनोहारिणी है। प्रस्तावना मे उन्होने प्रस्तुत सूत्र के नाम की चर्चा की है। इस सूत्र का नाम विवाहपण्णति' या भगवती सूत्र है । यह नाम क्यो है, इसकी चर्चा आगे की जायेगी। टीकाकार ने इस पचम अग को उन्नत ओर विजय मे समर्थ जयकुजर हाथी के समान निरूपण किया है । जयकुजर हाथी मे ओर भगवती सूत्र मे किस धर्म की समानता है जिसे आधार बनाकर भगवती सूत्र को कुजर की उपमा दी गई है? यह स्पष्ट करते हुए आचार्य ने सुन्दर श्लेषात्मक माषा का प्रयोग किया है । उसका ठीक-ठाक सौन्दर्य सस्कृतज्ञ ही समझ सकते हैं पर सर्वसाघारण की साधारण जानकारी के लिए उसका भाव यहा प्रकट किया जाता है | जयकुजर अपनी ललित पदपद्धति से प्रबुद्धजनो का मनोरजन करता है अर्थात्‌ जयकुजर हाथी की चाल सुन्दर होती है। वह इस प्रकार धीरे से पैर रखता है कि देखने मे अतीव मनोहर प्रतीत होता है । इसी प्रकार मगवती सूत्र भी अपनी ललित पदपद्धति से अर्थात सुन्दर पदविन्यास से विज्ञजनो का मनोरजत करने वाला है। इस सूत्र की पदरचना एसी ललित ओर मनोहर है कि समझने पाले का चित्त उसे देखकर आनदित हो जाता है | मगर प्रदुद्धजन ही उस आद का अतुभव फर सकते है। अज्ञ नासमञ्य लोगो का अगर आनद व आये तो इसकी पद रचा मे किसी प्रकार का दोष नहीं है जेस अघा आदम) साथी उ देख सके तो इसमे हाथी का दोष नही हे। ह कमकत ज द कक व 44.




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